सुरेंद्र राजभर
यूं तो समूचा भारत ही उत्सव धर्मी राष्ट्र है। हर दुख में भी मुस्कुराने, हंसने, लहकहे लगाने की जुगत भिड़ा ही लेते हैं हम भारतवासी। रंगों,फूलों के वैज्ञानिक गुणों को भारतवासी बहुत पहले से ही जानते थे। इसलिए कहीं फूलों की वर्षा कर होली खेली जाती है तो पूरे देश में रंगों और अबीर गुलाल की होली खेलने की परंपरा है। राधाजी के गांव बरसाने की होली तो जग प्रसिद्ध है। वहां पूरे वर्ष युवा गोपालक खूब खा पीकर शरीर बनाते हैं और होली के दिन गांव की गोपियां हाथों में लाठी लेकर ग्वालों को पीटना शुरू करती हैं। ग्वाले अपने सिर पर सिरस्त्रान रखे लाठियों की मार से खुद को बचाते दिखते हैं। इस होली को या फिर गोकुल की होली देखने देश विदेश से सैलानी आते रहते हैं। वे भी भारतीयों की भांति कृष्ण की होली का भक्तिभाव से आनंद और रोमांच अनुभव करते हैं। india Holi 2023
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लेकिन भगवान आशुतोष के त्रिशूल पर बसी काशी की होली तो गजब की होती है। काशी की मस्ती का क्या कहना। इसीलिए कहा जाता है,
चना चाबेना गंग जल जो देवे करतार।
काशी कबहूं न छोड़िए काशी के दरबार।।
काशी मोक्ष की नगरी कही जाती है। सुबह पौ फटते ही गंगा स्नान के बाद भगवान भूतेश्वर के दर्शन पूजन बिना काशी के वासी अपने दिन का आरंभ नहीं करते। संध्या समय भंग के गोले छानकर मस्त हो जाते हैं यहां के निवासी। इस अलमस्त काशी की एक होली भी अजीब है। यहां मणिकर्णिका घाट पर जहां दिन रात लगातार मानव का शव जलाया जाता है। रंगभरी एकादशी के पूर्व चिताओं की रख बटोर ली जाती है। उन्हें छलनी से छनकर कई ढेरी बनाई जाती है और काशीवासियों संग देशी विदेशी पर्यटक उसी चिता भस्म से होली खेलकर शिवमस्त हो जाते हैं। महाश्मशान की होली का अपना अलग रंग, अलग मस्ती है। बताया जाता है, कि भगवान भोले नाथ जब गौना लेने जाते हैं तो भूत पिसाच बेताल, प्रेत, चुड़ेल, अघोरी सन्यासी, शैव साक्त और अन्य गण शामिल नहीं हो पाते क्योंकि भोलेनाथ के विवाह में सभी गए थे और पार्वती के परिजन अड़ोस पड़ोस की रहने वालियां उनके विद्रूप चेहरे को देखकर भयभीत हो गईं थीं इसीलिए स्वयं भगवान भूतनाथ उन्हें अपने गवाने में नहीं ले जाते लेकिन भूत पावन शिव अपने गणों को निराश नहीं करते। अतः रंग भरी एकादशी को उनकी होली चिताभस्म से खेलने का मार्ग प्रशस्त कर देते हैं। लोग महाश्मशान मणिकर्णिका पर दिन में ही जुटने लगते हैं जिनमे काशीवासी, देशी विदेशी पर्यटक भी शामिल हो जाते हैं। सर्वप्रथम भगवान भोलेनाथ को भस्म लगाई जाती है। फिर जलती चिताओं के बीच ही चिताभास्म की होली खेली जाती है। चूंकि रंग भरी एकादशी को शिव का गवना कराया जाता है, इसलिए उसके दूसरे दिन चिताभस्म की होली खेली जाती है। जिसे लोग अपने कैमरों में बड़ी उत्सुकता से कैद करना नहीं भूलते। चिताभस्म की होली के द्वारा मृत्यु मुख में भी जीवन ढूंढने की जिजीविषा काशी वासियों को छोड़कर अन्यत्र कहां? चिताभस्म मृत्यु नहीं जीवंतता का साक्षात परिचय कराती है और बताती है मृत्यु सत्य और अटल नहीं है।क्षणिक है। शरीर मरता है। आत्माएं नहीं। हम शरीर नहीं आत्मा हैं जो अजर अमर है। जीवन ही सत्य है पर चिताभस्म की होली मुहर लगाती है। कभी आइए काशी की चिता भस्म आरती देखने ही नहीं खेलने भी। सच जीवन धन्य हो जाएगा। india Holi
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