मैं रोजे से हूँ!

 संवाददाता -(इस्माइल शेख)
मुसलमानों मे रमजान का महीना सबसे पाक यानी पवित्र माना जाता है। रमजान के महीने मे मुसलमान रोजा रखते हुए अल्‍लाह की इबादत भी कसरत से करते हैं। इस बार रमजान की शुरुआत 8 मई, कड़ी गर्मी के मौसम मे हुई है।

माहे रमजान के दौरान पूरे महीने तक रोजे रखे जाते हैं। इस पवित्र महीने के दौरान, हर तरह की बुरी आदतों से भी दूर रहा जाता है। नए चांद के साथ शुरू हुए रोजे का महीना अगले आने वाले नए चांद के साथ ही खत्‍म होता जाता है।

आज हम भूख और प्यास की शिद्दत बर्दाश्त कर रोजा रख रहे मुसलमानों का हाल जानने के लिए निकल पड़े हैं! कहते है ‘ये बरकतों और रहमतों का महीना है’ इस महीने की बरकत से लोगों के इमान ताजा हो जाते हैं! इस की गहराइयों को समझने के लिए मुंबई के मालाड़, कांदिवली और मालवनी जैसे कुछ मुस्लिम बाहुल्य इलाकों का हमने ज़ायजा लिया !

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मालाड़ मालवनी के अन्जूमन जामा मस्जिद मे नमाज अदा करने के बाद वहां के खतिबो इमाम जनाब, हजरत हाफ़िज व कारी अल्हाज मौहम्मद ईनआम साहब किबला सकलैनी से मुलाकात की उन्होंने बताया कि, हर साल की तरह इस साल भी यहां मुसलमानों मे इबादत करने वालों की बढोत्तरी हुई है, मुसलमानों मे कुछ लोग जो, जुआ शराब जैसे गलत कामों के आदी होते हैं, वह भी इस पाक महीने की बरकत से सुधर जाते हैं, उनमे से कुछ ऐसे भी होते हैं जो हमेशा के लिए अपनी जिंदगी को बदल कर नेक जिंदगी बसर करने लगते है, और ये तब्दिली हर साल होती ही रहती है! लोगों के इस बदलाव को हम रमजान के पाक महीने की बरकत का असर के रुप मे देख रहे है!

जामा मस्जिद के इमाम साहब से मुलाकात के दौरान वहीं मौजूद आलिमों की तन्जिम (ट्रस्ट) तन्जिम ज़ाअलहक के मौलाना अब्दुल रशीद से भी इसपर चर्चा की गई, यह मुंबई के आलिमों को जोड़कर एक संगठन के रुप मे तन्जिम बनाई गई है! मौलाना अब्दुल रशीद ने कुरान और हदीस के हवाले से बताया की रोजे रखने का मतलब सिर्फ भूखा रहना नहीं होता है, बल्कि हर बुरे कामों से दूर रहने और अल्लाह की पुरे तरीके से इबादत करने का नाम है रोजा । रोजे रखने का अर्थ अपनी आदतों और अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण भी होता है। रोजा रखने के कुछ खास नियम होते हैं। सुबह फजर की अजान से पहले जो खाना खाया जाता है, उसे सहरी कहते हैं। सहरी के बाद अजान का वक्त हो जाता है और रोजेदार अजान से पहले नियत करके रोजा रख लेता है। फिर नमाज के बाद कुरान-ए-पाक की तिलावत की जाती है। फिर दोपहर एक से देढ़ के बीच जोहर की नमाज अदा करनी होती है। शाम में 5 बजे के बाद असर की नमाज होती है। असर की नमाज के बाद लोग इफ्तारी (रोजा खोलना) की तैयारी शुरू कर देते हैं और शाम होते ही मगरिब की आजान से एक या दो मिनट पहले रोजा इफ्तार किया जाता हैं। इफ्तार के बाद मगरिब की नमाज होती है। रात में ईशा की नमाज के बाद तरावीह की नमाज पढ़ते हैं। तरावीह के दौरान कुरान की आयतों को पढ़ा जाता है और पूरी एक कुरआन खत्म की जाती है। कहीं 5 दिन मे, तो कहीं 7 दिन मे और कहीं 27 दिन मे तराविह की नमाजों मे पूरी कुरआन खत्म की जाती है, और तरावीह की नमाज पूरे महीने पढ़ी जाती है। इस साल दिनी माहौल का जज़बा बेहतरीन देखा जा रहा है, लोगों के घरों से दिन और रात  तिलावते कुरआन की आवाजें आ रही है!

मालवनी से निकलने के बाद हम मार्वे रोड़, चारकोप नाका स्थित मुस्लिम कब्रिस्तान और मस्जिद मे गये, वहां का नजारा और भी बेहतरीन नजर आया, मस्जिद मे कुछ लोग नमाज पढ़ रहे हैं, तो कई लोग कुरआन पढ़ रहे है, और कोई रो-रो कर अल्लाह से दुवाऐं मांग रहा है, ऐसे ही पूरे कब्रिस्तान मे लोग कुछ न कुछ पढ़ रहे हैं और खड़े-खड़े ही अपने हाथों को उठाऐ दुनिया से रुख़सत हो चुके लोगों के लिए मग्फिरत की दुवा मांग रहे हैं, कहते हैं नेक अमल के साथ रमजान के महीने मे मांगी गई दुवा अल्लाह के दर से कभी खाली नही जाती!

ऐसे ही असर की नमाज अदा करने के लिए, दारूल उलूम एहले सुन्नत वल जमात, अंजुमन कादरीया गणेश नगर चारकोप की मरकजी जामा मस्जिद पहुच गए, वहां के खतिबो इमाम मौलाना सैस्यद रेहान मियाँ से असर की नमाज अदा करने के बाद मुलाकात हुई, उन्होंने जानकारी को आगे बढ़ाते हुए बताया कि, “छोटे -छोटे बच्चे कुरआन की तिलावत मे मश्गुल हैं, जवान व बूढ़े और तकरीबन 100 साल के कुछ  बूढ़े भी पांचों वक्त जमात के साथ तराविह की नमाज अदा कर रहे हैं! जो चलने फिरने मे कमजोर हो वह अगर पांचों वक्त जमात के साथ तराविह भी अदा करे तो ये, रमजान की बरकत का ही असर है, जो भूख और प्यास के बावजूद कमजोर इंसान भी इबादत मे कोई कसर नही छोड़ रहे है !”

गणेश नगर से निकलकर और जगहों का दौरा करते हुए मालाड़, एस. वी. रोड़ के हजरत सैय्यद मखदुम शाह और हजरत सैय्यद मस्तान शाह की दरगाह पर हाजरी दी गई, जहां काफी भीड़ के बीच जियारत का मौका मिला, समय अब, मगरीब की नमाज का हो रहा था, तो वहीं रोजे की इफ्तारी की गई, और दरगाह की मस्जिद मे नमाज अदा की गई! इसी दौरान दरगाह के बाहर फूल की चादर बनाने वाले महमुद भाई से मुलाकात हुई पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि, “आम दिनों के मुकाबले रमजान के महीने मे यहां हाजिरी देने वालों की संख्या बढ़ जाती है, यहां मुसलमान ही नही और भी लोग बड़ी अकीदत के साथ अपनी हाजरी पेश करते हैं! इस साल की खास बात ये है कि, हर रमजान के मुकाबले इस बार हाजरी देने वालों की संख्या काफी बढ़ गई है, इस मंदी के माहौल मे भी लोग नेकी कमाने के लिए खर्च करने मे पीछे नही है, ये पाक महीने की ही बरकत का असर है, जो हम देख और महसूस कर रहे है!”

बता दें कि, मुसलमानों के अकीदत के मुताबिक, माह-ए-रमजान मुबारक को तीन हिस्सों में बांटा गया है। पहला खंड 1 से 10 रोजे तक होता है, इसमें बताया गया है कि, यह रहमतों (कृपा) का दौर है। इसके बाद दूसरे दस दिन मगफिरत (माफी) के और आखिरी हिस्सा जहन्नुम (नर्क) की आग से बचाने का करार दिया गया है। रोजे के दौरान सिर्फ भूखे-प्यासे रहने का ही नियम नहीं है। बल्कि आंख, कान और जीभ का भी रोज़ा रखा जाता है, यानि न बुरा देखें, न बुरा सुनें और न ही बुरा कहें। इसके साथ ही इस बात का भी ध्‍यान रखा जाता है कि, आपके द्वारा बोली गई बातों से किसी की भावनाओं को तकलीफ न पहुंचे। मानसिक आचरण भी शुद्ध रखते हुए पांच बार की नमाज और कुरान पढ़ी जाती है। इस दौरान मन में किसी भी प्रकार के बुरे विचार या मन में किसी के भी प्रति गलत भावना नहीं लानी होती है। इस्लाम धर्म में बताए नियमों के अनुसार पांच बातें करने पर रोजा टूट जाता है। झूठ बोलना, बदनामी करना, पीठ पीछे किसी की बुराई करना, झूठी कसम खाना और लालच करना। रमज़ान में ज़कात,फितरा (चैरिटी) दिया जाता है, और यह साथी नागरिकों की सेवा का समय होता है। यह महीना परिवारों, पड़ोसियों और समुदायों को करीब लाता है!

इसी बीच दरगाह हजरत सैय्यद मगदुम शाह और हजरत सैय्यद मस्तान शाह के ट्रस्टी /सदर मोहम्मद रफीक तैय्यब जी से मुलाकात हुई ! उनसे भी इस माह की खासियत पर जानना चाहा तो उन्होंने बताया कि, “हर रमजान से इस रमजान के महीने मे दुगुना नमाजी आ रहे हैं, जो 700 से 1000 का आकड़ा पार हो रहा है, दरगाह शरीफ के जायरीन मे भी इजाफा हुआ है, यहां आने वाले रोजेदारों के इफ्तारी और बाकी इंतजामात के लिए हिस्सा लेने वालों का शुक्र है, जो अखराजात मे हमेशा से हिस्सा ले रहे है,जो मंदी के बीच भी बढ़-चढ़ कर ताऊन कर रहे हैं, वलीयों की चौखट से कोई खाली हाथ नही जाता, ये अल्लाह का करम है, और हमारे लिए रमजान की बरकत है, जो दरगाह की बढ़ती जरुरत भी पूरी हो जा रही है!” उन से बात हो ही रही थी कि, ईशा की अजान हो गई, अब वक्त ईशा की नमाज और तराविह का हो रहा था, फिर से दरगाह की मस्जिद के इमाम मौलाना शब्बीर अहमद अशरफ़ी के पीछे जमात के साथ नमाज की नियत हम ने बांध ली, नमाजे ईशा पढ़ी उसके बाद 20 रकात तराविह  हूई, बादोहु नमाजे वित्र इमाम साहब ने पढ़ाई! फिर नफ्ल के बाद, इमाम साहब तकरीर के लिए खड़े हो गए! लगभग 10 मिनट उन्होंने अपने बयान मे, ये बताने की कोशिश की, कि आज जो हमने तराविह की नमाज मे कुरान शरीफ की आयतें सूनी है, उसमे अल्लाह ने क्या उपदेश दिया है, और हमे उसका पालन कैसे करना चाहिए! उनकी तकरीरी दलिलों को सुनकर काफी अच्छा महसूस हुआ, और हमें लगा कि, काश इस इमाम की तरह हर मस्जिद मे मुसलमानों को हर इमाम एैसे समझाने का तरीका अपनाए तो, सही माईने मे इस्लाम की अच्छाई लोगों के बीच लाई जा सकती है !

तकरीर के बाद खड़े होकर सारे लोगों ने नबीए करीम सल्ल्लाहू अलैही व सल्लम की बारगाह मे सलाम पेश किया, फिर अमनो शांति के लिए मुख्तसर दुआ हुई! फिर लोग मुसाफा (एक दूसरे से हाथ मिलाना) करके अपने-अपने घर चले गए! आखिर मे मैने ईमाम साहब से पूछा क्या आप एैसे ही रोज लोगों को समझाते हैं? तो इमाम साहब ने जवाब दिया “जी पूरे रमजान मे इसी तरह जारी रहता है! और रमजान के अलावा बाकी महीनों मे हर जुमेरात (गुरूवार) बाद नमाजे ईशा के बाद ऐसे ही लोगों को समझाने का काम किया जाता हैं!”

रमजान की  बरकत को जानने के लिए जितने भी आलिमों और मुसलमानों से हमने मुलाकात की जीन सब के नाम मैं यहां पेश नही कर पाया हूं, उन सब और सारे मुसलमानों के लिए एक ही फरीयाद आम रही है, “जिस तरह रमजान महीने मे आप नेकीयों मे इजाफा करने के लिए खुद मे तब्दिली ला लेते हो, काश इस अमल को रमजान तक ही सीमित ना रख कर, पूरी ज़िन्दगी को इसी तरह इबादत और बंदगी मे बसर करते रहे तो दुनिया ही नही आखिरत भी सवर जाएगी और किसी के भी जिंदगी मे दुख और परेशानी का नामोनिशान नही रहेगा! इस्लाम को सही तरीके से समझने की जरुरत है!”


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