- महाराष्ट्र सरकार की राजनीति।
- दो घड़ों में बट गए बिल्डर लॉबी और कॉरपोरेट।
- चाणक्य भूल जाते हैं कि लोकसभा की 41 सीटें जीतने में शिवसेना गठबंधन का हाथ था।
- महाराष्ट्र में बीजेपी दोयम दर्जे से कभी आगे नहीं बढ़ी।
सुरेंद्र राजभर
मुंबई- महाराष्ट्र सरकार में यहां भूचाल मचा हुआ है। दो पक्षों की साझेदारी में धीरे-धीरे तनाव उत्पन्न हो रहा है। शिंदे और फडणवीस के बीच तलवारें खिंच चुकी हैं। क्योंकि फडणवीस गृहमंत्री होते हुए भी ठाणे जिले के आईपीएस को हटा नहीं सकते जबकि भाजपा के स्थानीय बड़े नेता का सिर फोड़ दिया गया। यह साझेदारी कब तक चलेगी यह कहा नहीं जा सकता।
दिल्ली बड़ी बेरहम है। जो कोई सत्ता में आता है, खुद को सम्राट समझने लगता है। वहां का सत्ताधारी कभी भी बर्दास्त नहीं करता, कि उसके साम्राज्य में किसी प्रांत का नेता शक्तिशाली बनकर उसे चुनौती देने की स्थिति में आए। इसीलिए यूपी में भाजपा के स्टार प्रचारक योगी आदित्यनाथ के पर कतर दिए गए। बिना दांत और नाखून के सीएम बना दिए गए। मजबूरी थी केंद्र की क्योंकि योगी आरएसएस के बेहद करीब हैं। सरकार में उनके दाहिने बाएं तो महावत के रूप में उपमुख्यमंत्री रख दिए गए। संगठन में प्रांतीय अध्यक्ष और प्रभारी दिल्ली ने नियुक्त कर योगी को रोक दिया। लेकिन योगी के बगावती तेवर ने उन्हें शक्तिशाली सीएम बना दिया।
महाराष्ट्र सरकार की राजनीति ..
महाराष्ट्र में बकौल पूर्व सीएम फड़णवीस ने ही शिवसेना तोड़ने, शिंदे के साथ अपनी मित्रता निभाने और खुद मुख्यमंत्री बनने के ख्वाब पाले थे। किंतु चाणक्य ने सस्पेंस रखते हुए एकनाथ शिंदे को सीएम बना दिया। फड़नवीस को बेइज्जत करने के लिए उन्हें डिप्टी सीएम बनने को मजबूर कर दिया।
अब शिंदे और फडणवीस के बीच तलवारें खिंच चुकी हैं। क्योंकि फडणवीस गृहमंत्री होते हुए भी ठाणे जिले के आईपीएस को हटा नहीं सकते। जबकि भाजपा के स्थानीय बड़े नेता का सिर फोड़ दिया गया। शिंदे के प्रभाव के कारण एफआईआर भी नहीं लिखी गई। कितने असहज हो चुके हैं फडणवीस?
बिल्डर लॉबी,कॉरपोरेट भी दो घड़े में बंट गए हैं। कुछ को शिंदे तो कुछ को फडणवीस का वरद हस्त प्राप्त है। बीजेपी के कार्यकर्ता पीटे जाय। फडणवीस उसके पक्ष में खड़े भी हो जाएं लेकिन शिंदे द्वारा यह कहा जाए कि ठाणे जिले के किसी पुलिस अधिकारी का फडणवीस ट्रांसफर या पोस्टिंग, प्रमोशन नहीं कर सकते। क्योंकि बॉस शिंदे हैं और फडणवीस उनके अधीन हैं। उन्हे शिंदे का आदेश मानना ही पड़ेगा। बेचारे शिंदे करते भी तो क्या ? क्योंकि निरंतर उनका अपमान चाणक्य के फोन आने के बाद किया जाता है।
आज हालत ऐसे हैं कि कभी अभिन्न मित्र आज आंख में आंख मिलाकर बात तक नहीं करते। जिसका खामियाजा लोकसभा और विधानसभा चुनाव में बीजेपी को ही भुगतना पड़ेगा। यूपी में लोकसभा की 64 सीटें 2019 में बीजेपी जीती थी। वहां योगी को नीचा दिखाया जा रहा और महाराष्ट्र में कुल 41 लोकसभा सीटें जीतने वाली भाजपा आगामी चुनाव में दहाई तक का आंकड़ा भी नहीं छूने की स्थिति में रह गई है। जिस बालासाहेब ठाकरे ने 2001 के गुजरात दंगे में सीएम मोदी का साथ दिया था। उन्हीं के बेटे उद्धव ठाकरे को चाणक्य ने लहूलुहान कर मोदी के विजय रथ को रोक दिया है। संभव है चाणक्य खुद पीएम की कुर्सी पाना चाहते हों और मोदी को डोमिनेट करने की महत्त्वाकांक्षा रखते हों।
महाराष्ट्र के मामले में चाणक्य भूल जाते हैं, कि लोकसभा की 41 सीटें जीतने में शिवसेना गठबंधन का हाथ था और यह भी भूल गए कि महाराष्ट्र में बीजेपी दोयम दर्जे से कभी आगे नहीं बढ़ी। शिवसेना के प्रभुत्व का लाभ बीजेपी को मिलता रहा है। लेकिन उद्धव ठाकरे को चोटिल कर चाणक्य ने भाजपा का महाराष्ट्र में सर्वनाश करने का जुगाड कर लिया है। इससे, सबसे बड़ा नुकसान पीएम मोदी का ही होगा और विधानसभा चुनाव में आने वाले समय में बीजेपी को 288 सीटों में बमुश्किल 20 सीटें ही मिलेंगी। शरद पवार, कांग्रेस और उद्धव ठाकरे की ही आगामी सरकार बनेगी। उसी तरह जैसे यूपी की लोकसभा चुनाव में 40 सीटों पर पेंच फसने से आरएसएस चिंतित है।
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