इजराईल के यहूदी जर्मनी से हिटलर की तानाशाही और लाखों यहूदियों को पकड़कर ज्वलनशील चैंबर में बंद कर जलाए जाने के डर से अपना जीवन बचाने के लिए भाग खड़े हुए। दुनिया के किसी देश ने उन्हें पनाह नहीं दी। लेकिन चूंकि फिलिस्तीन उस समय ब्रिटेन का उपनिवेश था तब अंग्रेजों ने उन्हें फिलिस्तीन में शरण दिया। लेकिन यहूदियों ने धीरे धीरे फिलिस्तीनी इलाकों पर कब्जा करना शुरू कर दिया।
प्रसिद्ध और संपन्न नगर गाजा पर इतनी अधिक बमबारी की जिसमें अस्पताल तक नहीं छोड़ा। दूध मुहे बच्चों का भी नरसंहार किया। गाजा पर अब अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की टेढ़ी नजर है। वे गाजा को हड़पना और वहां इजराईल की सहायता से व्यापारिक संकुल बनाना चाहते हैं। जिस तरह भारत में मुसलमानों को किरायेदार कहा जा रहा है उसी तरह यहूदी तो किरायेदार भी नहीं शरणार्थी हैं। जैसे कश्मीर से भगाए गए पंडित खानाबदोश हालत में ट्रांजिट कैंपों में नरकीय जीवन जीने को अभिशप्त कर दिए गए हैं।
हिंदू वादी सरकार पिछले ग्यारह वर्षों में कश्मीरी पंडितों को घाटी में बसाने की बात करती रही, लेकिन कुछ किया नहीं। अनाथ बनाकर छोड़ दिया। बीमारी, अभाव और गंदगी में घुट-घुट कर मरने के लिए।
कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टिकरण करने का आरोप लगाने वाली हिंदूवादी सरकार और हिंदू राष्ट्र निर्माण के लिए प्रयत्नशील आरएसएस ने उन कश्मीरी पंडितों की ओर झांकने की जहमत तक नहीं उठाई। फिर उनके लिए आवाज कैसे उठाती?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप की दोगली अनीति देखिए। एक तरफ वे ईरान को परमाणु संपन्न देश नहीं बनने के लिए वार्ता कर रहे हैं, तो वहीं इजराईल को ईरानी परमाणु प्रोजैक्ट पर हमला करने को भी कह रहे हैं। परमाणु वार्ता संपन्न हुई नहीं कि इजराईल ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर दो सौ बम वर्षक विमान भेजकर आधा दर्जन ठिकानों पर बम गिरा कर दो वैज्ञानिकों, सेना के कमांडरों की हत्या कर दी।
स्वाभाविक है ईरान बदले की भावना से इजराईल पर हमला करता रहा। जिस तरह भारत को आत्मरक्षार्थ आतंकवादी पाकिस्तान पर हमला करने का अधिकार है। उसी तरह ईरान को भी इजराईल पर हमला करने का मौलिक अधिकार मिल जाता है। ईरान ने इजराईल पर इतनी अधिक बमबारी की, कि उसके परमाणु ठिकानों और सेना का संहार कर दिया। इस वज़ह से इजराईल के पास सैनिकों की कमी हो गई है। जिस कारण वह सेना में नई भरती करने को मजबूर हो गया है।
इजराईल अपने नुकसान को हमेशा छुपाता रहता है। नए सैनिक भरती करने से ही पता चल जाता है कि ईरान ने उसे कितनी क्षति पहुंचाई है? धूर्त अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के अनुसार ईरान पर इजराईली हमले में उनका कोई हाथ नहीं है। ईरानी हमले से डर कर अमेरिका ने अरब देशों से अपने सैनिक हटा लिए हैं। दियागोगरसिया में अमेरिका ने अपना सैनिक बेस बनाया हुआ है। ईरान के पास सात सौ किलोमीटर दूर तक मार करने के लिए मिसाइल की कमी है। इसलिए दियागोगरसिया पर हमला नहीं कर पा रहा। इसका मतलब यह नहीं कि ईरान चीन और रूस से लंबी दूरी तक मारक मिसाइल नहीं ले सकता। जिस दिन ईरान ने रूस और चीन से लंबी दूरी तक मार करने की मिसाइल खरीद ली, उसी दिन अमेरिकी बेस पर हमला करके अमेरिका को भारी क्षति पहुंचा सकता है।
जो डोनॉल्ड ट्रंप बारंबार भारत और पाकिस्तान को एक ही तराजू से तौलते हुए सीज फायर का ऐलान करते हुए बार-बार कहा कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान पर व्यापार का दबाव डालकर सीजफायर करा दिया है। दर्जनों बार यही दोहराते रहने वाला धूर्त ट्रंप अब कहने लगा, कि उसने दबाव डालकर सीजफायर नहीं कराया।
धूर्त ट्रंप की जुबान का क्या भरोसा? वह तो भारत को चीन के खिलाफ एक मोहरा मानता है। दूसरी तरफ भारत को विकसित होते देख उसकी छाती पर सांप लौटने लगता है। भारत को कमजोर करने के लिए ट्रंप पाकिस्तान को सैन्य हथियारों और विभिन्न स्रोतों से अरबों डॉलर्स कर्ज दिलाकर पाकिस्तान पर आजमान करते हुए चीन के प्रभाव को कम करना चाहता है।
भारत को बारंबार अपमानित करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ रहा। अमेरिकी सेना की 250 वी वर्षगांठ पर पाकिस्तान को आमंत्रित कर भारत को फिर से अपमानित किया है। पता नहीं मोदी की कौन सी दुखती रग वह जब चाहे दबा देता है और भारत के प्रधानमंत्री सरेंडर हो जाते हैं। बड़बोले ट्रंप की किसी बात का जवाब ही नहीं दे सकते। शायद मोरल ही नहीं है वर्ना शक्ति संपन्न राष्ट्र भारत के प्रधानमंत्री होते हुए भी क्यों ट्रंप की घुड़की सहन करते हैं?
राहुल गांधी इसी बात पर नरेंद्र का सरेंडर कहकर तंज कसते हैं। ईरान और इजराईल का घमासान ट्रंप क्यों नहीं रुकवा देते? रूस और यूक्रेन के बीच तीन साल से चल रहे युद्ध को रुकवाने की हैसियत क्यों नहीं है ट्रंप में?
ट्रंप के दोगलेपन और कुटनीतियों के कारण उनके खिलाफ अमेरिकी जनता उठ खड़ी हो चुकी है। सड़कों पर उतरकर अमेरिकी नागरिक ट्रंप का विरोध करने लगे हैं। उनकी चुनाव में जीत दिलाने में हजारों करोड़ डॉलर लुटा देने वाले अरबपति मस्क भी ट्रंप को गद्दी से उतारने में लगे हैं। संभव है कि जिस बिल को ट्रंप ब्यूटीफुल कहते हुए तारीफों के पुल बांधते हैं सीनेट से पास ही नहीं हो सके। क्योंकि यदि मस्क ने सीनेटरों को ट्रंप के विरोध में लाने के लिए रिपब्लिकन के दो तीन और सीनेटरों को ट्रंप के खिलाफ लाने में सफल हुए तो बिल सीनेट में पास नहीं हो सकेगा। जबकि चार सीनेटर ट्रंप की नीतियों की आलोचना प्रबल तरीके से करके ट्रंप को चेतावनी दे दी है। अगर सीनेट से ट्रंप को ब्यूटीफुल बिल पास नहीं हो सका तो अविश्वास प्रस्ताभ लाकर ट्रंप को उनके पद से हटाया जा सकता है।
बहरहाल भारत के सामने चुनौती है। हमारे भारत देश के ईरान और इजराईल दोनों से रिश्ते अच्छे हैं इसलिए भारत को दोनों के साथ संबंध बनाए रखने होंगे, ताकि कोई विरोधी नहीं हो जाए। भारत को रूस के राष्ट्रपति को रूस चीन भारत संगठन पर भी पुनः विचार करना होगा, जो डोकलाम में चीनी भारतीय सैनिकों के बीच झड़प के बाद पटरी से उतर गई थी।
तेहरान में बमों के धमाके सुनाई देने की बात पर ट्रंप को अंदेशा हो गया है कि अब ईरान इजराईल और अमेरिकी बेस पर परमाणु हमला कर सकता है। इसी डर से अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने जी 7 देशों की मीटिंग छोड़कर अमेरिका जाने की योजना ही नहीं बनाई बल्कि अमेरिकी सुरक्षा तंत्र को एलर्ट कर दिया है।
अमेरिका जाकर ट्रंप इमरजेंसी मीटिंग करेंगे इसलिए सभी अधिकारियों को तैयार रहने का आदेश दे दिया है। इजराईली हमले का करारा जवाब देने की योजना ईरान ने बना ली है। कब और कैसे जवाबी हमला ईरान करेगा यह जल्द ही मालूम होगा। ट्रंप ने ईरान के साथ वार्ता के लिए अपने सहयोगी स्टॉफ को एलर्ट कर दिया है। ट्रंप को भय है कि रूस चीन और नॉर्थ कोरिया के हस्तक्षेप के बाद विश्वयुद्ध छिड़ना तय है।
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