- दूसरी बार नोट बंदी घोषित।
- विपक्ष में रहकर भ्रष्ट नेता बीजेपी ज्वाइन करने के बाद ईमानदार कैसे?
- सितंबर की अंतिम तारीख है 2000 के नोट बदलने की: RBI
- 2016 में नोट बंदी के पूर्व ही आरबीआई एक्ट की धारा 24/1 के अधीन 2000 और 500 की नई करेंसी छपी थी।
- खोखला साबित हुआ कालेधन के विरुद्ध बीजेपी सरकार का दावा।
- इन दिनों बाजार में नकदी लेन देन का ट्रेंड बढ़ा।
- 2000 की करेंसी बंद करने का असर वैसा ही होगा जैसा 2016 में हुआ।
- आधार कार्ड जैसी आईडी की जरूरत नहीं होगी नोट बदलने के लिए: SBI
सुरेंद्र राजभर
मुंबई- सरकार के लोग चाहे इसे नोट बदली कहें या और कुछ, है तो नोट बंदी ही, जिस तरह 2000 की करेंसी का प्रचलन बंद करने की घोषणा हुई। सत्ता दल के लोग कहने लगे है कि यह भ्रष्टाचार के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक है। इस तरह की बयानबाजी उस वक्त भी दी जा रही थी। जब आधी रात के बाद 500 और 1000 के नोट को रद्दी, कागज़ का टुकड़ा कहा गया था। तब दावा किया गया था, कि नोट बंदी से कालाधन बाहर आएगा। फेक करेंसी बंद होगी। आतंकवाद की कमर टूट जाएगी। (दूसरी बार नोट बंदी घोषित)
लेकिन कुछ भी नहीं हुआ। सिवाय किसान और आम आदमी की तकलीफें बढ़ाने के। लोगों को बैंक की लाइन में लगा दिया गया। सैकड़ों मासूम नोट बदलने की गरज में ईश्वर को प्यारे हो गए। बेशक! उनकी मौत के लिए जिम्मेदार है बीजेपी सरकार। कालाधन का एक पैसा भी बाहर नहीं निकला। सारी करेंसी बैंकों के माध्यम से दो हजार की शक्ल में फिर उन्हीं के हाथों में पहुंच गई। एक हजार, पांच सौ की करेंसी बंद करके दो हजार रुपए की करेंसी निकालना किसी पहेली से कम नहीं था।
देशभर में दूसरी बार नोट बंदी घोषित..
आर बी आई की रिपोर्ट में कहा गया, कि 99% करेंसी बैंक में लौट आई है। शेष या तो जला दी गई हैं या फाड़कर नदियों में बहा दी गई। जबकि आतंकवाद और फेक करेंसी धड़ल्ले से देश में चलती रहीं। कुल मिलाकर नोट बंदी फ्लॉप साबित हुई। हां नुकसान छोटे उद्योगों का हुआ। तीस लाख छोटे उद्योग बंद हो गए, जिस कारण लगभग एक करोड़ लोग बेरोजगार हो गए थे। नोट बंदी के कुछ ही समय बाद आरबीआई ने रिपोर्ट दी कि नौ लाख करोड़ की नई करेंसी बाजार से बाहर ज़रूर हो गई। इसके साथ ही नोटबंदी कर नए करेंसी की छपाई पर जो सरकारी धन खर्च हुआ उसका क्या?
स्विस बैंक में 2016 और 2018 के बीच जमा कालाधन 14 गुना बढ़ गया। तो क्या यह नहीं मानना चाहिए कि जितनी बड़ी करेंसी बाजार से बाहर हुई वे स्विस बैंकों में जमा नहीं हो गईं?
नोट बंदी के नाम पर आम नागरिकों को बैंकों की लाइन में खड़े करने वाली सरकार को बताना चाहिए, कि क्या आम जनता ही चोर है? क्यों नहीं कोई विधायक, ब्यूरोक्रेट, सांसद, मंत्री या बड़ा व्यापारी और उद्योगपति बैंक की लाइन में खड़ा हुआ? क्या वे सभी हरिश्चंद्र की भांति ईमानदार हैं? यह दावा किया जा सकता है, कि जिस तरह बीजेपी सरकार विपक्षियों को टारगेट करके आईटी, सीबीआई और ईडी को पीछे लगा रही है। सत्ता में बैठे विधायकों, सांसदों, मंत्रियों, व्यापारियों, उद्योगपतियों के यहां छापे मारे जाएं तो अकूत संपत्ति जब्त की जा सकती है।
दो दिन पूर्व भ्रष्ट होने का सर्टिफिकेट जारी करने वाले बड़े नेता यह बताएं कि विपक्ष में रहकर भ्रष्ट होने वाले जब बीजेपी ज्वाइन कर लेते हैं तो वे ईमानदार कैसे हो जाते हैं? नोट बंदी पार्ट टू। अब आरबीआई ने 2000 की नोट बदलने की अवधि सितंबर की अंतिम तारीख तय की है। 2016 में नोट बंदी के पूर्व ही आरबीआई एक्ट की धारा 24/1 के अधीन 2000 और 500 की नई करेंसी छपी थी। यहां एक बार विचारणीय है, कि नवंबर 2016 को नोट बंदी लागू करने के 15 महीने पूर्व ही 2000 और 500 की नई करेंसी छपनी शुरू हो चुकी थी। फिलहाल इस बार आरबीआई ने सभी बैंकों द्वारा 2000 की करेंसी का भुगतान रोक दिया है।
जेएनयू के प्रोफेसर और आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ अरुण कुमार ने बीजेपी के उस तर्क को खारिज कर दिया। जिसमें कालाधन के विरुद्ध सर्जिकल स्ट्राइक का दावा किया जा रहा है। उनके अनुसार काली कमाई होती रहेगी तो कालाधन बनता रहेगा। काली कमाई ही कालाधन के रूप में जमा होता है। दरअसल 2000 रुपए की करेंसी धीरे-धीरे बाजार से लगातार बाहर होती जा रही थी। 31 मार्च 2018 में बाजार में 6.73 लाख करोड़ के 2000 की करेंसी थी। जो कुल नोटों का 37.3 % थी। 31 मार्च 2023 में बाजार में मात्र 3.69 लाख करोड़ की 2000 करेंसी रह गई। जो कुल नोटों की मात्र 10.8 % है। यानी लगभग 34% नोट बाज़ार से गायब हो गई है।
मान लें यदि औसतन 20000 रुपए लोग अपने निजी कार्य के लिए रखे हों घर में तो केवल 36800 लोग ही ऐसे होंगे जिनके पास 2000 रुपए की करेंसी होगी। घर में लोग इमरजेंसी में नकदी व्यय के लिए अधिकतम एक लाख रुपए रखते होंगे। बाजार में नकदी लेन-देन का ट्रेंड इन दिनों बढ़ा है। नोट बंदी के समय बाजार में 18 लाख करोड़ के नोट थे, जो अब बढ़कर 35 लाख से अधिक हो गए हैं। 2018 के बाद 2000 की करेंसी छपनी ही बंद कर दी गई। इस 2000 की करेंसी बंद करने का असर वैसा ही होगा, जैसा 2016 में हुआ था।
इस बार भी लघु उद्योगों छोटे व्यापारियों पर मार बढ़ेगी। छोटे उद्योग चलना बंद होंगे। बेरोजगारी चरम पर पहुंचेगी। देश में आरबीआई के 31 स्थल हैं, जहां नोट बदले जा सकेंगे। इस बार एसबीआई ने घोषित किया है, कि नोट बदलने के लिए आधारकार्ड जैसी आईडी की जरूरत नहीं होगी। आशंका जताई जा रही थी, कि रुपए बदलने का प्रमाण सरकार के पास पहुंचने पर नोट बदलने वालों से आय के स्रोत पूछे जाएंगे जो निराधार है। बहरहाल इस बार की नोट बदली का वही हश्र होगा जो पहली नोट बंदी का हुआ था। इसके बाद सरकार क्या करेगी? कहा नहीं जा सकता!
अंत में कहना होगा, कि अपने आका के हुक्म पर आरबीआई ने 2000 की करेंसी जमा करने का आदेश निकाला है। अब यहां ध्यान देने वाली बात होगी। जैसा की एसबीआई (SBI) ने कहा कि 2000 की बीस नोट कोई भी व्यक्ति जमा कर बदले में नोट ले सकेगा। यह इसलिए कि धन्नाशेठ सौ व्यक्ति लगा देंगे सौ- दो सौ रुपए देकर। सौ व्यक्ति एक दिन में जमा कर सकते हैं 2000 गुने सौ यानी 20, 00000 (बीस लाख) गुने दस।
अब 120 दिनों में 2000 गुने दस गुने 120 अर्थात एक व्यक्ति इन चार महीनों में 2,40,00,00,000 रुपए जमा कर देगा और सौ लोगो को नोट देकर जमा कराने पर कुल 24,00,00,00,00,00 अर्थात दो खरब चालीस अरब रुपए जमा करा सकेंगे। इस तरह सारा पैसा व्हाइट में बदला जाएगा। अगर कोई फंसेगा तो वो हागा सिर्फ आम आदमी, जो अपने काम धंधे छोड़कर बैंकों की कतार में अपने नंबर का इंतजार करता हुआ नजर आएगा। वाह रे हमारे देश की राजनैतिक सरकार, तेरा कोई जवाब नहीं।
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