
- कौन सी चौथी इकॉनमी बन गया भारत?
- एस आई पी एकाउंट क्यों बंद कर रहे हैं लोग ?
- जनता के एकाउंट से हो चुका है अब तक ३६ करोड़ का फ्रॉड …!
- दो लाख करोड़ की साप्ताहिक GST की हो रही वसूली
- GDP किनकी बदौलत बढ़ी?
- विपक्षी भ्रष्ट नेताओं को बीजेपी में शामिल कर लेने और कुनबा बढ़ाने से कोई लोकप्रिय नहीं होता..!
मुंबई: बड़े गर्व से मुनादी पीटी जा रही है, कि “जापान को पछाड़ कर भारत विश्व की चौथी आर्थिक व्यवस्था बन गई है।” अब कहा जा रहा है, कि “चंद दिनों में जर्मनी को पिछाड़कर तीसरी अर्थ व्यवस्था बन जायेगा भारत।” कौन सा भारत बन गया चौथी इकॉनमी? उन गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले 80 करोड़ ग़रीबों की या फिर 65% बेरोजगार युवा मजदूरों की?
लोग एस आई पी बंद कर रहे हैं। बैंक के कर्ज तले दबकर किसान और छोटे व्यवसायी आत्महत्या कर रहे हैं। गोल्ड लोन भी मंहगा हो गया है। रुपया डॉलर के मुकाबले 87 के निचले स्तर पर आ चुका है। नकली करेंसी पर कोई रोकटोक नहीं लग पाई है। डिजिटल देन लेने वाले ईमानदार लोगों के बैंक एकाउंट से अब तक 36 करोड़ रुपये का फ्रॉड किया जा चुका है। मंहगाई सरकार के कागजों में गुलाबी हो गई है। दो जून की रोटी के लाले पड़ गए हैं।
मनरेगा, शिक्षा, चिकित्सा का बजट कम कर दिया है। प्राइवेट स्कूल हों या प्राइवेट अस्पताल तो गहना और जमीन तक बिकवा दे रहे हैं। सरकारी अस्पतालों में न योग्य डॉक्टर न मशीन जिनसे जांच की जा सके। सरकार केवल दो कार्यों में जुटी है। जनता से हर एक चीज़ पर जी एस टी लेने जिस पर फख्र करती है सरकार। जबकि दो लाख करोड़ की साप्ताहिक जी एस टी वसूली हो रही धन कम से कम जनता के हित में तो खर्च हो ही रहे हैं।
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दूसरा काम हैं चुनाव प्रचार में जनता के पैसों की बर्बादी। प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्री क्यों जाए जनता के पैसों पर चुनाव प्रचार करने? क्या इतने मूर्ख होते हैं उनके प्रत्याशी कि सरकार को प्रचार करने के लिए गालीबाज नेता और नफरत का जहर घोलने वाले दुर्बुद्धि नेता की जरूरत पड़ती है। सरकार सिर्फ पूंजीपतियों के सोलह लाख बैंक कर्ज माफ कर सकती है। धनिकों की संपत्ति बढ़ाने का ही काम करती है। कल तक लल्लू सेठ आज अरबपति बन गए। बैंक का कर्ज लेकर देश से बाहर भगाने का काम भी सरकार कराती है।

जी डी पी किनकी बदौलत बढ़ी? एक प्रतिशत धन्नासेठों की जो सरकार को चुनाव में अरबों चंदा देते हैं इसके बदले में धन्नासेठों को सरकार धंधा देती है। भारत सरकार जिस चौथी अर्थव्यवस्था का दंभ भर रही है उसमें सौ करोड़ लोगों की आय कितनी है? केवल चंद अरबपतियों के बूते सरकार विश्व की पहली अर्थव्यवस्था होने के दावे भी कर दे तो ताज्जुब नहीं। ताज्जुब तो तब होगा जब सौ करोड़ लोगों को निःशुल्क शिक्षा सुविधा रोजगार और चिकित्सा की अच्छी व्यवस्था कर सके। जो करना ही नहीं चाहती।
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क्योंकि देश को मूर्ख रखकर गुलाम बनाना और हिंदुत्व का जहर उनकी रगो में भरकर वोट ले सकती है। मोदी जो प्रधानमंत्री हैं ग्यारह वर्षों में एक भी उपलब्धि बताकर जनता से वोट मांगने की हिम्मत तो दिखाते। सबकी जमानत जब्त हो जाएगी। विपक्षी भ्रष्ट नेताओं को बीजेपी में शामिल कर लेने और कुनबा बढ़ाने से कोई भी लोकप्रिय नहीं हो जाता। उसके लिए जनता के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने वाला होना चाहिए। झूठ बोलकर शब्ज़ बाग दिखने और वादे पूरा करने वाला बेहद क्रूर और तानाशाह हो सकता है जन नेता नहीं।
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