इस्माइल शेख
मुंबई- पश्चिम उपनगर में दहिसर, बोरीवली, कांदिवली और मलाड के वन भूमि पर बसे गरीब झोपड़ा वासियों को 7 हज़ार रुपयों में सरकारी नकली रसीद दिए जाने के आरोप में पुलिस ने कुछ लोगों को गिरफ्तार किये जाने के बाद बोरिवली के नेशनल पार्क के वन विभाग कार्यालय में खलबली मची हुई है!
वन भूमि पर बसे झोपड़ा वासियों को मकान उपलब्ध कराने के लिए न्यायालय द्वारा जारी आदेशानुसार सन् 2000 तथा 2008 के दरम्यान वन विभाग तकरार निवारण कार्यालय में प्रत्येक झोपड़ा वासियों से 7 हज़ार रुपये भरवाए गए थे! ऐसे झोपड़ा धारकों के दस्तावेजों की पिछले दो-तीन महिनों से वन विभाग पड़ताल कर रही है! इसी दरम्यान कुछ झोपड़ा धारकों के पास से फर्जी रसीद बरामद हुए हैं जिसके बाद इस रैकेट का भंडाफोड़ हुआ है!
तीन आरोपी को गिरफ्तार
वन विभाग के शिकायत पर कुरार और समता नगर पुलिस ने तीन आरोपियों को गिरफ्तार किया है! आरोपी ने अपना गुनाह भी कबूल कर लिया! हालांकि, इस रैकेट के पीछे के असली अपराधियों का पता लगाना अब पुलिस के लिए एक चुनौती है! जब तक असली अपराधी पकड़ा नहीं जाता, पुलिस के लिए इस रैकेट का मास्टरमाइंड ढूंढना मुश्किल है! यदि मास्टरमाइंड पाया जाता है, तो नकली रसीद घोटाला सही अर्थों में सामने आएगा और गरीब झोपड़ी धारकों के साथ हुए धोखाधड़ी का मामला उजागर हो सकेगा!
मुंबई उपनगर के दामुनगर, गौतम नगर, लाहुगड, रामगड, केतकीपाड़ा, अप्पपाड़ा, सावित्रीबाई फुले नगर, अंबेडकर नगर, जामरुषी नगर आदि के कुछ निवासी वन भूमि पर रहते हैं और उन्होंने, वन विभाग बोरिवली नेशनल पार्क कार्यालय में अपने झोपड़े के पुनर्वसन के ख़ातिर सन् 2000 तथा 2008 के काल में 7 हज़ार रुपये भर कर रसीद कटवाई है! लेकिन कई झोपड़ा मालिक इसमें पैसों के अभाव के कारण भुगतान से वंचित थे! एसे झोपड़ा धारकों को वन विभाग कार्यालय में घूमने वाले अवैध दलाल तथा नेशनल पार्क के कुछ अधिकारी एवं कर्मचारियों की लापरवाही और वन विभाग प्रशासन की मिलीभगत से पिछले 8 से 10 वर्षों से यह गोरखधंधा चल रहा था! इसकी जानकारी वन विभाग के एक कर्मचारी सूत्र से प्राप्त हुई है!
वन क्षेत्रपाल के बजाय वन क्षेत्रवाल की मुहर से हुआ खुलासा-
पिछले तीन महीनों से, वन विभाग के कर्मचारी मलाड और कांदिवली में झुग्गीवासियों के दस्तावेजों की जांच कर रहे हैं! मामले में निरीक्षण करते समय, कर्मचारियों ने 2008 की रसीद में वन क्षेत्रपाल के बजाय वन क्षेत्रवाल की मुहर देखी! इससे कुछ समय के लिए कर्मचारी भी भ्रमित हो गए! उन्होंने अपने वरिष्ठों को रसीद दिखाई! फ़ॉरेस्ट डिपार्टमेंट ने तब रसीद बनाने वालों के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज की, जिसके बाद पता चला कि असली रसीद और नकली रसीद के मुहर में एक विसंगति थी! शिकायत के बाद कुरार पुलिस ने आरोपी गौरीशंकर शिवशंकर मिश्रा, राजनारायण सीताराम यादव और सुरेश पैठणे को गिरफ्तार कर लिया है!
पिछले 8 वर्षों से वन विभाग रहा गाफिल-
वन भूमि पर झोपड़ा मालिकों को नकली रसीदें जारी करने की प्रथा 2012 से शुरू हुई! लेकिन पिछले 8 वर्षों से वन विभाग प्रशासन इसके प्रति गाफिल क्यों रहा ? इस तरह के प्रश्न अब उठने लगे हैं! गिरफ्तारी के मामले में अधिकांश फर्जी रसीदें उत्तर भारतीय नागरिकों की हैं! चूंकि उनके पास 1995 का सबूत नहीं था, इसलिए आरोपी वन क्षेत्रपाल की मोहर के साथ फर्जी रसीदें जारी कर रहे थे! विश्वस्त सूत्रों के अनुसार, इसके लिए 2 से 3 लाख रुपये की उगाही की गई है! सूत्रों ने बताया कि गिरफ्तार शिवशंकर के कब्जे से 3 से 4 और रसीदें बरामद हुई हैं!
वन विभाग के अधिकारी भी संदेह के घेरे में-
गिरफ्तार आरोपियों के पिछले 8 से 10 वर्षों से वन विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों से संबंध थे! वन विभाग के कुछ अधिकारी प्रशासन में रहकर प्रशासन को दिशाहीन करने का काम कर रहे थे! इनमें से कुछ अधिकारी सेवानिवृत्त हो चुके हैं! परिणामस्वरूप, वन विभाग के शिकायत निवारण मामले और कार्यालय के अधिकारी और कर्मचारी संदेह के घेरे में हैं और गहन पूछताछ की मांग बढ़ रही है!
दामुनगर आग के बाद रसीद पर हुई थी चर्चा-
वर्ष 2015 में, दामुनगर के अग्नि कांड (गैस सिलेंडर ब्लास्ट) में 1200 झोपड़े जलकर खाक हो गए थे! उसके बाद फ़ॉरेस्ट डिपार्टमैंट में 50 हजार रुपये भरकर फलाना…अमुक…लोगों द्वारा रसीदें देने की चर्चा महीनों तक चलती रही! क्या 7 दिसंबर, 2015 के बाद इस तरह से किसी को फर्जी रसीदें दी गई हैं? इसपर भी पुलिस को जांच करनी चाहिए! इस पड़ताल से भी, कई बड़ी मछलियां पुलिस की जाल में फंसने की संभावना यहां के झोपड़ा मालिकों द्वारा की जा रही है!
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