ताकि लोकतंत्र शेष रहे।

चुनाव मुख्य आयुक्त आनन फानन में मनमाने ढंग से नियुक्त करने की सर्वत्र आलोचना होने लगी थी। यदि ऐसा ही चलता रहता तो लोकतांत्रिक मूल्यों की हत्या हो जाती। जब चुनाव आयोग स्वतंत्र संस्था है, तो सत्तारूढ़ दल का उस पर कब्जा क्यों रहे। अभी कुछ वर्षों का रिकार्ड रहा है, कि कोई भी मुख्य चुनाव आयुक्त अपना छः वर्ष का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया क्यों? शायद उन्होंने सत्ता का समर्थन करने से मना कर दिया हो, तो उन्हें हटाना सरकार के लिए तो मामूली बात रही। खैर देर आए दुरुस्त आएकी तर्ज पर लोकतंत्र में चुनावी शुचिता बनाए रखने में सुप्रीम कोर्ट का सुप्रीम फैसला मील का पत्थर बन गया। इसके पूर्व सी.बी.सी. और सी.बी.आई. में भी प्रधानमंत्री, विपक्ष नेता और सी.जे.आई. के द्वारा चुनाव की व्यवस्था है। सुप्रीमकोर्ट के विद्वान जस्टिस गण के एम.जोसेफ, अनिरुद्ध बोस, ऋषिकेश राय, सी.टी. रविकुमार और अजय रस्तोगी ने महत्त्वपूर्ण फैसले में कहा, कि मुख्य चुनाव आयुक्त और आयुक्तों की नियुक्ति देश के प्रधानमंत्री, नेता विपक्ष नहीं होने पर विरोधी सबसे बड़े दल का नेता और सुप्रीमकोर्ट के सी.जे.आई. करेंगे। यही नहीं कोर्ट ने चुनाव आयोग का स्थाई सचिवालय होने और आयोग का खर्च भारत की समेकित निधि की मांग पर कहा, ‘कोर्ट संसद और सरकार से जोरदार अपील करता है, कि इस संबंध में आवश्यक बदलाव करे। जिससे आयोग स्वतंत्र बना रहे। अर्थात अब से मुख्य चुनाव आयुक्त और आयुक्तों की नियुक्ति में कोलेजियम व्यव्स्था लागू होगी।’ संविधान पीठ का यह निर्णय भारतीय इतिहास में मील का पत्थर बन गया। जब चुनाव आयोग स्वतंत्र संस्थान रहेगा तो चुनाव में पक्षपात की संभावना कम होगी। राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला स्वतंत्र रूप से करेगा। कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 324 का जिक्र भी किया जो चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति से संबंधित है। संसद में कोई कानून पारित नहीं किया गया जो अयोग्य की सदस्यों की नियुक्ति के लिए ज़रूरी है। नौकरशाह अरुण गोयल की झटपट नियुक्ति पर सवाल उठाया गया था। बहरहाल अब विरोधी दल भी आश्वनवित होंगे कि अब ई.वी.एम. में गड़बड़ी नहीं होगी।

सुप्रीम ने हिडेनवर्ग की रिपोर्ट में अडानी समूह पर गड़बड़ी करने के आरोप की जांच करने के लिए महत्त्वपूर्ण निर्णय लिया है। सुप्रीमकोर्ट ने छः सदस्यीय जांच कमेटी बनाई है, जिसकी अध्यक्षता सुप्रीमकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस अभय मनोहर सप्रे करेंगे। बाकी सदस्य एस.बी.आई. के पूर्व चेयरमैन ओ.पी.भट्ट, बोम्बे हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त जस्टिस जे.पी. देवघर, इंफोसिस के पूर्व चेयरमैन के.वी. कामथ, इंफोसिस के सह संस्थापक नंदन नीलेकणी और वरिष्ठ वकील सोम शेखर सुंदरसन होंगे। विभिन्न क्षेत्रों के महारथी मिलके आरोपों की जांच करने के साथ ही शेयर धारकों, निवेशकों के धन सुरक्षित रखने और सेबी को और अधिक मजबूत और कार्यजीवी बनाने पर कार्य करेंगे। सुप्रीमकोर्ट के ये दोनो निर्णय भविष्य में पारदर्शिता के मार्ग खोलेंगे।
इल्यास मर्चेंट की कलम से… 🖋

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