दुनिया की निगाहों में भारत की गवाही और भारत के बीच हुए लगातार आतंकी हमलों पर विदेश नीति और संसद में खड़े होकर छपरी और टपरी जैसे भाषण कि “पहले मुझसे निपटो फिर मोदीजी का नाम लो।” और पाकिस्तानी हमले पर ट्रम्प का सीजफायर। भारत ने स्वार्थवश खुद हमला कराया होगा जिससे सबूत ही नहीं दे पा रहा।
डिजिटल डेस्क
नई दिल्ली: संसद का मानसून सत्र चल रहा। बिहार में वोट काटने का खेल चुनाव आयोग खेल रहा। रोहिंग्या बांग्लादेश और नेपाली के नाम पर लाखों नाम काट डाले गए। blo लोगों के घर जाकर सत्यापन करने की जगह ऑफिस में बैठकर फॉर्म में नाम लिखकर खुद ही वोटर के हस्ताक्षर कर रहे। विपक्षी उनके वोटरों के नाम काटने के आरोप लगाए। पत्रकार अजीत अंजुम ने मोबाइल द्वारा चुनाव आयोग के खेल को सबूत सहित सार्वजनिक किया तो उनपर एफआईआर कर दी गई यानी सच दिखाने का दंड दिया गया।
लोकतंत्र का हिस्सा
संसद में ऑपरेशन सिंदूर की चर्चा में सत्ता विपक्ष में वाक्युद्ध चल ही रहा था, कि सीजफायर की भी बात हुई। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के 25 बार कहे गये वक्तव्य, कि “हमने ट्रेड की धमकी देकर युद्ध रुकवा दी।” पर विपक्ष ने हमला बोला। यही जीवंत लोकतंत्र है। ट्रंप ने खुद अपने एक्स हैंडल पर शाम 5.35 पर सीजफायर की घोषणा की। भारत की तरफ से नहीं। संसद में सत्ता ने उत्तर नहीं दिया। विपक्ष मांग करता रहा कि पीएम आकर कहें कि ट्रंप ने वॉर नहीं रुकवाई। रक्षामंत्री ने कहा पीओके लेना हमारा मकसद नहीं फिर भाजपा ने बार बार कांग्रेस और नेहरू पर आरोप क्यों लगाए?
संसद में होती है गुंडो की भाषा
पहलगाम में कथित तौर पर पाकिस्तानी आतंकी आए और धर्म पूछकर मारा जिसके प्रमाण नहीं। संसद के मानसून सत्र के समय ही सेना ने घोषित किया कि मुठभेड़ में सारे आतंकी मारे गए। इससे पूर्व जिन कथित आतंकियों के स्क्रेच जारी किए गए गवाह ने उसे गलत कहा। अहम बात यह कि सत्ता के दंभ में गृहमंत्री अमित शाह ने कहा, “पहले मुझसे निपटो फिर मोदीजी का नाम लो।” क्या ऐसे स्पीकर और राज्यसभा के सभापति सदन की मर्यादा बचाने की कोशिश करेंगे? “मुझसे निपट लो।” क्यों भाई पीएम हो क्या? ऐसी भाषा किसी गली का गुंडा या फिर माफिया ही बोल सकता है। लेकिन विपक्ष को टोकने वाले सत्ता की असंसदीय भाषा की अनसुनी करते हुए पद की गरिमा खो चुके हैं।
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जवाब देने से क्यों भागती है मोदी सरकार?
मोदी सरकार वर्तमान में अपने से संबंधित बात पर चर्चा करने से भागती है। मोदी दिल्ली में ही है लेकिन सदन में आ नहीं सकते। ऐसा मणिपुर मामले में किया था। अंतिम समय में आए भी तो क्या कुछ कहा दुनिया जानती है। प्रधानमंत्री होने के नाते कभी मणिपुर गए ही नहीं। इसी तरह उरी, पठानकोट, पुलवामा और पहलगाम भी नहीं गए। यह सही है कि पहलगाम में आतंकी हमला हुआ। 27 भारतीयों को जान गंवानी पड़ी। विपक्ष सवाल पूछता रहा, सवा सौ किलोमीटर दूर पाकिस्तानी आतंकवादी कैसे आए? लोगों से कथित रूप से धर्म पूछा। पेंट खुलवाकर देखा कौन सा धर्म है। बीजेपी के मंत्रियों में तनिक भी विधवा हुई महिलाओं के प्रति सम्मान भाव नहीं देखा गया। बड़ी बेशर्मी से कहा गया, महिलाओं में वीरांगना भाव नहीं था। एक ने तो कर्नल सोफिया के लिए आतंकवादियों की बहन तक कह दिया। यही है इनका सेना के प्रति सम्मान भाव।

कांग्रेस पर सवाल उठाने का नतीजा
अब सेशन में ऑपरेशन सिंदूर पर सवाल जवाब हो रहे हैं। इसी बीच उन दरिंदे आतंकवादियों को सेना द्वारा मुठभेड़ में मारे जाने की बात कही गई। यहां टाइमिंग का सवाल जरूर उठता है। विपक्ष के प्रधान की पुलवामा में उपयुक्त आरडीएक्स कहां से आया सत्ता के पास कोई उत्तर है ही नहीं। कांग्रेस फोबिया से पीड़ित बीजेपी सरकार ने मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डाल दिया। मुंबई आतंकी हमले का आरोप लगाकर अपने आरोप ढकने और जायज़ ठहराने की नाकाम कोशिश की। जिस पर प्रियंका गांधी ने आड़े हाथों लेते हुए जवाब दिया। मुंबई हमले के सारे आतंकियों को भून दिया गया। एक जीवित आतंकी कसाब को पकड़कर फांसी दी गई। जिसे दुनिया ने देखा और भारत के साथ पूरी दुनिया खड़ी दिखाई दी। आतंकवाद की सर्वत्र आलोचना की गई।
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इस्तीफे देने का दायित्व
यही नहीं कांग्रेस में दायित्वबोध जवाबदेही होने के कारण महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने इस्तीफा दिया और गृहमंत्री ने खुद को दोषी समझकर इस्तीफा दे दिया। लेकिन यह भूल गई प्रियंका कि बीजेपी में दायित्व बोध जवाबदेही और इस्तीफा देने की समझ है ही नही। अगर नैतिकता होती तो मणिपुर मामले में इस्तीफा दिया गया होता। उरी, पठानकोट और पुलवामा की असफलता पर इस्तीफे की झड़ी लग गई होती। प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन से इस्तीफा मांगने वाले क्यों नहीं अपने गृह मंत्री, रक्षा मंत्री और प्रधानमंत्री से इस्तीफा देने की मांग करते?
सरकार ने दिया सेना को धोखा
इस्तीफा तो विदेश मंत्री को भी देना चाहिए था कि उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर शुरू होने के पूर्व पाकिस्तान को सूचना दे दी, जिससे हमारे विमान मार गिराए गए। पीएम मोदी से इस गलत बयानी और प्रचार पर इस्तीफा मांगते कि उन्होंने दावा किया था सेना को खुली छूट दी है समय और स्थान सेना तय करे जबकि फौजी अधिकारियों ने बार बार मोदी के दावे की पोल खोली है। यही नहीं एयर मार्शल भी कह चुके हैं कि “जब समय पर सप्लाई नहीं कर सकते तो वादा क्यों करते हो?”
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कांग्रेस और मोदी में अंतर?
आज तक सत्ता का कोई भी उन मारे गए पर्यटकों के घर जाने की जरूरत नहीं समझी जब कि नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी जाकर उनके जख्मों पर मरहम लगा चुके हैं। राहुल गांधी की राजनीति सर्व ग्राही है। इसीलिए वे मणिपुर जाकर पीड़ितों के ज़ख्म सहला चुके हैं उनके विपरीत पीएम मोदी शहीदों के नाम पर वोट ही नहीं मांगे बल्कि कानून नियम के विरुद्ध सेना की वर्दी पहनकर ऑपरेशन सिंदूर की सफलता का श्रेय लेते हुए अपनी फोटो डालकर पोस्टर चिपकवा चुके हैं। पाकिस्तान के दो टुकड़े करने और 95 हजार सैनिकों के आत्मसमर्पण की सफलता का श्रेय लेने की कोशिश इंदिरा गांधी ने कभी भी नहीं की।
टैक्स का बोझ सुविधा के नाम पर भ्रष्टाचार
दरअसल हिंदू-मुस्लिम कर चुनाव आयोग द्वारा छल कपट और गलत काम कराकर चुनाव जीतना ही मोदी का एकमात्र लक्ष्य है। फर्जी वोटर बढ़वाकर हरियाणा, महाराष्ट्र, दिल्ली चुनाव जीतने के बाद बिहार में वोटरों को बाहर करने का खेल चुनाव आयोग खेल रहा है। मोदी सरकार अपने 11 साल के शासन में किए गए कार्य पर वोट मांगने की हिम्मत कर ही नहीं सकते। क्योंकि किसान, मजदूर, युवाओं, छात्रों, गृहिणियों के जीवन को दूभर बना दिया है। टैक्स का इतना भार दुनिया के किसी भी देश में नहीं है। सुविधा के नाम पर सर्वत्र भ्रष्टाचार ही हुआ है।
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प्रशासन का गलत इस्तेमाल
सरकारी स्कूल बंद किए जा रहे ताकि गरीबों के बच्चे पढ़ न सकें। परीक्षा में अनियमितता के विरोध में छात्र हितों के खातिर जब शिक्षक दिल्ली में रैली कर रहे थे तब पुलिस द्वारा शिक्षकों को घसीट कर बस में जबरन बिठाकर दूर ले जाकर छोड़ा गया। इस कार्य में दिल्ली पुलिस सिद्धहस्त है, जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी से न्याय मांगने महिला पहलवान जब दिल्ली के जंतर मंतर पर रैली निकाले हुए धरने पर बैठी थी तब भी अमित शाह के आदेश पर उन्हें घसीटा और बसों में जबरन लादकर दूर ले जाकर छोड़ा गया था।
विश्व की चौथी अर्थव्यवस्था होने दावा?
दिल्ली पुलिस वही है जो हाईकोर्ट के जस्टिस वर्मा के घर आग लगने से जली झुलसी नोटो की गाड़ियों के खिलाफ एफआईआर तक दर्ज नहीं कर सकी। जांच करना तो बड़ी दूर की बात, जिस राष्ट्र में शिक्षकों को अपमानित किया जाए। उन्हें घसीटकर बसों में ठूंसा जाए। प्रतियोगी परीक्षाओं के पेपर लीक कर चालीस पचास लाख रुपयों में बेचा जाए। सड़कें पहली ही बरसात में बहने लगें। पुल बनते समय या उदघाटन के पहले ही जल समाधि लेने लगें। ये सारे करतूतें भ्रष्टाचार सामने दिखता ही नहीं बल्कि चीख-चीख कर बोलता भी है। उस देश को वहां की सरकार जो विश्व की चौथी अर्थव्यवस्था होने का दावा करे, जहां की अस्सी करोड़ जनता को गरीबी रेखा से नीचे रखने का षडयंत्र रचा जाए, क्या कहा जा सकता है?
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विदेशनीति पर सवाल?
ऐसी विदेशनीति को क्या कहा जाए कि अरबों रुपए जनता के पैसे फूंककर विश्व की यात्रा की जाए। लेकिन पाकिस्तान युद्ध के समय दुनिया का एक भी देश खुलकर भारत के साथ नहीं आए। अमेरिका का राष्ट्रपति धमकी देता रहे। राष्ट्र को अपमानित करता रहे लेकिन सत्ता में हिम्मत नहीं जो कह सके ट्रंप झूठ बोल रहा है। उसी ट्रंप ने रूस से तेल खरीदना बंद करा दे जबकि हमारा पड़ोसी चीन अमेरिका के आंखों में आँखें डालकर जवाब देता हो। सबसे विश्वसनीय देश रूस को भी दूर कर दे ऐसी विदेशनीति जो अमेरिका की गोद में बैठी हो क्या कहा जाएगा?
दुनिया की निगाहों में भारत?
भारत ने डेलिगेशन भेजे बताने के लिए कि पाकिस्तान ने पहलगाम में आतंकी हमला करके 27 बेकसूरों को गोली मारकर हत्या कर दी, जिसके लिए जीरो टॉलरेंस अपनाकर हमने पाकिस्तानी आतंकवादियों के अड्डों पर सीमित हमले कर सौ आतंकियों को मार गिराया। लेकिन कोई राष्ट्र यकीन नहीं कर रहा। क्योंकि हमारे पास कोई सबूत नहीं जैसा कि मणिशंकर ने कहा है जिसका अर्थ दुनिया समझती है भारत ने स्वार्थवश खुद हमला कराया होगा जिससे सबूत नहीं दे पा रहा। मुंबई हमले में कसाब को जिंदा सबूत दिखाया गया था। यानी पाकिस्तानी आतंकवाद की गुहार कोई सुनने के लिए तैयार नहीं उलटे ट्रंप हम पर 25% टैरिफ और रूस से तेल खरीदने पर 100% पेनल्टी लगाने की घोषणा कर दी। संसद में भले दावा किया गया हो कि पाकिस्तानी आतंकियों को सेना ने मार गिराया है। दुनिया की निगाहों में भारत झूठ बोल रहा।
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