हर राज्य में जातीय आधार पर जनगणना की मांग। जातिवादी वोट पाकर नेता लेंगे सत्तासुख। जातीय गणना देश और नागरिकों के बीच बटवारे की नींव।
सुरेंद्र राजभर
मुंबई- भारतीय लोकतंत्र के लिए जातिवाद सबसे बड़ी समस्या है। जातियों के आधार पर जनता को बांटना उचित और देशहित में नहीं हो सकता लेकिन जातिवादी राजनीति कर सत्तासुख भोगने वाले नेता जातीय आधार पर गणना करके अपना जमीनी आधार पुख्ता करना चाहते हैं। जातीय आधार पर गणना कराकर भले ही नेताओं को सत्तासुख की प्राप्ति हो लेकिन देश को कमजोर किया जा रहा है।
एक तरफ जातिवाद खत्म करने के नारे लगाए जा रहे तो दूसरी ओर जातीयता मजबूत करने के मंसूबे पूरा किए जाना देश में बंटवारे की नींव डालेगा। देखादेखी हर राज्य में जातीय आधार पर जनगणना की मांग उठने लगी है जिसमें जातिवादी वोट पाकर नेता सत्तासुख भी लेंगे। महाराष्ट्र राज्य में सत्र के अंतिम दिन पूछे गए सवाल के जवाब में उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा, कि ओ.बी.सी. जातीय जनगणना बिहार में कराई जा रही। पहले बिहार में ओ.बी.सी. जनगणना का अध्ययन किया जाएगा इसके बाद निर्णय लिया जाएगा।

उन्होंने कहा, ओपन कैटेगरी में आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए योजनाएं तैयार की जाएगी। ओ.बी.सी. आरक्षण और जातीय आधार पर जनगणना का प्रश्न विधानपरिषद में पूछने पर राज्य के उपमुख्यमंत्री ने महत्त्वपूर्ण घोषणाएं की। उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा जातीय आधार पर जनगणना कराए जाने का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा, कि एक कमेटी गठित की जाएगी जो बिहार में कराई जा रही जनगणना का सावधानी से बिहार जाकर अध्ययन करेगी। ताकि जाना जा सके कि बिहार सरकार किस तरह गणना करा रही है।उसी फार्मूले को यहां महाराष्ट्र में लागू किया जाएगा।
जातीय गणना, जातिवादी राजनीति..
ज्ञात हो कि बिहार राज्य में 7 जनवरी 2023 से जातीय गणना शुरू हुई है। जिसकी जिम्मेदारी सरकार ने सामान्य प्रशासन विभाग को सौंपा है। बिहार सरकार एक मोबाइल फोन ऐप के जरिए परिवार का डेटा कलेक्ट कर रही है।बिहार राज्य की सूची में लगभग 204 जातियां हैं। जिनमें 22 अनुसूचित जनजाति में 32, अनुसूचित जाति में 22, पिछड़ा वर्ग में 30, अति पिछड़ा वर्ग की 113 और सवर्ण की 7 जातियां हैं। इस जातीय जनगणना पर 500 करोड़ व्यय की आशा है। मई 2023 तक सर्वे पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।
बता दें कि बिहार और महाराष्ट्र राज्य के सामाजिक ताने बाने में बहुत फर्क है।
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