सनातन धर्म का सत्यानाश कर दिया है मंदिर के पंडे पुजारी और कर्मकांडी पंडित

  • ढकोसला बंद करें पंडे पुजारी!
  • भगवान जगन्नाथ को गर्मी से बचाने के नाम पर 108 घड़ों से स्नान कराकर शीत पैदा करते हैं पंडे पुजारी।
  • क्या कोविड 19 महामारी में समूची दुनिया पीड़ित रही तो पंडे पुजारी और कर्मकांडी पंडितों ने भगवान जगन्नाथ को काढ़ा पिलाया था?

सुरेंद्र राजभर
मुंबई-
कण कण में भगवान मिलते हैं। ब्रह्म ही विस्तारित होकर ब्राह्मण बने हैं। परमात्मा ही आत्मा रूप में हर जीवित प्राणियों में अवस्थित हैं। त्रिगुणी माया ब्रह्मा के रूप में रचना करते हैं। विष्णु के रूप में पालन और शंकर या शिव रूप में संहार करते हैं।
ये मंदिर के पंडे पुजारी और कर्मकांडी पंडितों ने मिलकर सनातन धर्म का सत्यानाश कर दिया है। आज भी इनके ढकोसले यथावत जारी हैं।अतुलित है इनकी माया।

भगवान जगन्नाथ जिन्हें श्री कृष्ण परमब्रह्म कहा गया है जिसके विग्रह हैं जगन्नाथ।कितना क्रूर मजाक है जो जगत का नाथ है,नियंता है उसे ये पंडे पुजारी बीमार बता देते हैं। बकायदा बीमार पड़ने की तिथि भी इन लोगों ने तय कर दी है। ये पंडे पुजारी भगवान के नियंता बन बैठे हैं। जब हाहते हैं उन्हें बीमार बना देते हैं और पथ्य देने लगते हैं। वाह री इन पंडे पुजारियों और कर्मकांडियों की माया! इनका वश चले तो ये खुद सृष्टि के निर्माता पालन कर्ता और संहारक बन जाएं।

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ढकोसला, पंडे पुजारी,
भगवान जगन्नाथ की फाइल तस्वीर

ढकोसला बंद करें पंडे पुजारी!

लानत है इनके ढकोसलों पर। गुमराह करते हैं ये भोले भाले भक्तों को एवं उनकी भावनाओं को चोट पहुंचाने से भी नहीं चूकते हैं। ग्रीष्म काल में गर्मी से बचाने के नाम पर 108 घड़ों से स्नान कराकर शीत पैदा करते हैं। फिर शीत लगने से भगवान जगन्नाथ को बीमार बता देते हैं और उन्हें चंगा करने के नाम पर ये धूर्त 15 दिनों तक अपने खुद डॉक्टर बनकर इलाज करते हुए उन्हें तुलसी, काली मिर्च, सोंठ, लौंग और अन्य कथित औषधियों के काढ़ा पिलाने का स्वांग रचते हैं।

आषाढ़ शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को भगवान जगन्नाथ को स्वस्थ कर देते हैं। है न कमाल! ये पंडे पुजारी जब चाहें भगवान को बीमार कर दें और फिर धनवंतरी वैद्य बनकर उन्हें काढ़ा पिलाकर स्वस्थ कर दें। पता नहीं जब कोविड 19 महामारी में समूची दुनिया पीड़ित रही तो क्या इन्होंने भगवान जगन्नाथ को काढ़ा पिलाया था या नहीं? शायद भगवान जगन्नाथ इनके गुलाम हो गए हैं। जो इनके निर्देश पर बीमार होते हैं फिर स्वस्थ हो जाते हैं।

मजेदार बात यह है, कि इन पंद्रह दिनों यानी आषाढ़ मास कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को भगवान जगन्नाथ बीमार होकर पूरे पंद्रह दिनों तक सोते रहते हैं और फिर काढ़ा पीकर स्वस्थ हो जाते हैं। क्यों नहीं सरकार इन्हें भगवान जगन्नाथ के मंदिरों से हटाकर मेडिकल प्रेक्टिस कराती जो बीमारों को अस्पताल में नहीं जाने देंगे और काढ़ा पिलाकर स्वस्थ कर देंगे। देश का अरबों रुपया जो चिकित्सा पर व्यय होता है उसे बचाया जा सकता है।
सच तो यह है कि पंद्रह दिनों तक भक्तों को। भगवान के दर्शन पूजन से वंचित रखने वाले सत्य से भागे हुए हैं।

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