‘झारखंड इंटलेक्चुअल फोरम’ और ‘प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर भारत अभियान संगठन ‘ के संयुक्त तत्वावधान में ‘राष्ट्रीय जनजातीय गौरव दिवस ‘(15 नवंबर ) की पूर्व संध्या पर एक भव्य गरिमामय कार्यक्रम का आयोजन यशवंतराव चौहान सभागृह ( मंत्रालय के पास ,चर्चगेट ,मुंबई ) में किया जा रहा है जिसमें उप मुख्यमंत्री श्री देवेंद्र फडणवीस ,श्री राधाकृष्ण विखे पाटिल , श्री प्रवीण दरेकर ,श्री रामदास आठवले ,श्री राहुल नार्वेकर और श्री आशीष शेलार जी के श्रीवचनों के द्वारा राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम में जनजातीय समाज के योगदानों पर प्रकाश डाला जाएगा तथा उसके अवयवों से युवाओं एवं बालकों को प्रेरित किया जाएगा कि वे स्वयं को राष्ट्रीय गौरव गाथाओं से सज्ज करें। (Indian Freedom Fighters)
भारत में स्वतंत्रता सेनानियों ने असमान लड़ाइयों के अनेक उदाहरणों को दर्ज किया है क्योंकि ये उस समय अपरिहार्य हो गए थे जब साम्राज्यवादी ताकतें अत्याचारी ताकत के बल पर विभिन्न इलाकों पर कब्जा करने के लिए बाहर निकल पड़ी थी। इन ताकतों ने स्वतंत्र लोगों की स्वतंत्रता और संप्रभुता को नष्ट करके असंख्य पुरुषों, महिलाओं और बच्चों के जीवन का सर्वनाश करने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया। यह विस्तारवाद के बुरे डिजाइन और आत्म प्रस्तुति की शक्तिशाली भावना के बीच एक युद्ध था। (Maharashtra Political News)
जनजातीय गौरव दिवस
भारत में अंग्रेजों के साम्राज्य विस्तार, भू राजस्व प्रणालियां, आर्थिक शोषण, सामाजिक धार्मिक भेदभाव, जनजातियों को उनके अधिकार से वंचित करना एवं स्थानीय समुदाय के साथ दुर्व्यवहार आदि के कारण विभिन्न क्षेत्रों में जन समुदाय के द्वारा अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन किए गए जिनमें कुछ का स्वरूप स्थानीय था, जबकि कुछ जनांदोलन विस्तृत क्षेत्र में फैल गए थे। बिरसा मुंडा ने 5 जनवरी, 1900 ई० को विद्रोह की शुरुआत कर दी। चारों तरफ भयंकर रक्तपात होने लगा। शुरू में तो अंग्रेज महाजन और जमींदार मारे गये किन्तु बाद में अंग्रेजी सेना ने इस विद्रोह का सामना किया। अंग्रेजों ने मुंडाओ के विद्रोह का दमन कर दिया, बिरसा मुंडा पकड़े गये और इन्हें रांची जेल में डाल दिया गया। कुछ समय बाद जेल में हीहैजा से इनकी मृत्यु हो गई। (Indian Freedom Fighters)
भारत में विद्रोह
भारत में होने वाले कुछ अन्य प्रमुख विद्रोहों का वर्णन ऐसा है कि कोल विद्रोह का क्षेत्र छोटा नागपुर पठार था जिसका नेतृत्व बुद्धो भगत ने किया, खासी विद्रोह मेघालय में तीर्थ सिंह के नेतृत्व में फैला तो रम्पा विद्रोह को आंध्र प्रदेश में राजू रम्पा, रामोसी विद्रोह को महाराष्ट्र में चीत्तर सिंह, कुकी आन्दोलन को मणिपुर तथा चूआर आन्दोलन को बंगाल में जगन्नाथ का नेतृत्व मिला। इसका सम्पूर्ण इतिहास बहुत प्रेरणादायी और गौरवान्वित करनेवाला है। (Indian Freedom Fighters)
यह सारहीन है कि उनके प्रतिरोध आंदोलन के पीछे क्या मजबूरियां या प्रेरणाएं थीं, यह भी सारहीन है कि इन जनजातीय क्रांतिकारियों के पास सशस्त्र विद्रोह करने के लिए कोई औपचारिक शिक्षा और प्रशिक्षण भी नहीं था और न ही उनके पास कार्रवाई करने के लिए मार्गदर्शन और उन्हें प्रेरित करने के लिए कोई आम नेतृत्व भी नहीं था लेकिन इस तथ्य में कोई गलती नहीं है कि उन्होंने विदेशी शासकों को अपने निवास स्थान, सदियों पुराने रीति-रिवाजों, सांस्कृतिक, रस्मों में कोई हस्तक्षेप करने के लिए दब्बूपन दिखाकर समर्पण नहीं किया। उन्होंने शाही ताकत के धुरंधरों के रूप में काम किया और उनके सभी कार्य और आचरण विदेशी शासन को उखाड़ फेंकने के लिए निर्देशित थे। (Indian Freedom Fighters)
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