सिर्फ तीन तलाक पर रोक है, तलाक-ए-अहसन पर नहीं। मुस्लिम व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर रद्द

बॉम्बे हाईकोर्ट ने स्पष्ट करते हुए मुस्लिम व्यक्ति और उसके परिवार पर दर्ज FIR को रद्द कर दिया, कि तलाक-ए-अहसन 2019 के एकसाथ तत्काल तीन तलाक पर लगे प्रतिबंधित अधिनियम का उल्लंघन नहीं है। इसलिए ऐसे मामलों पर पुलिस एफआईआर दर्ज नहीं कर सकती। (Only triple talaq is banned, not talaq-e-ahsan. FIR against Muslim man quashed)

मुंबई- बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट कर दिया है कि मुस्लिम महिला (विवाह के अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 केवल तत्काल तीन तलाक को ही अपराध की श्रेणी में लाता है। इस तरह के तलाक को तलाक-ए-बिद्दत या ट्रिपल तलाक भी कहा जाता है। कोर्ट ने कहा कि कानून के तहत तलाक-ए-अहसन जैसे अन्य वैध इस्लामी तलाक के तरीकों को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा गया है। इस फैसले के तहत, हाईकोर्ट ने एक मुस्लिम व्यक्ति और उसके माता-पिता के खिलाफ दर्ज की गई FIR को रद्द कर दिया। (Only triple talaq is banned, not talaq-e-ahsan. FIR against Muslim man quashed)

क्या है तलाक-ए-अहसन?

यह निर्णय उस मामले में आया जिसमें एक मुस्लिम व्यक्ति और उसके माता-पिता पर 2019 के कानून के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी, जबकि व्यक्ति ने तलाक-ए-अहसन की प्रक्रिया अपनाई थी। तलाक-ए-अहसन के तहत एक बार तलाक कहा जाता है, जिसके बाद महिला को इद्दत या तीन महीने की प्रतीक्षा अवधि से गुजरना पड़ता है। (Only triple talaq is banned, not talaq-e-ahsan. FIR against Muslim man quashed)

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कानून का दुरुपयोग

खबरों के मुताबिक, न्यायमूर्ति विभा कंकनवाड़ी और न्यायमूर्ति संजय देशमुख की पीठ ने कहा, “जब तथ्यों को स्वीकार किया गया है और कानून को ध्यान में रखा गया है, तो यह स्पष्ट है कि प्रतिबंध केवल तलाक-ए-बिद्दत पर है, न कि तलाक-ए-अहसन पर। ऐसे में यदि आरोपियों को मुकदमे का सामना करने को कहा जाए तो यह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।” (Only triple talaq is banned, not talaq-e-ahsan. FIR against Muslim man quashed)

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महिला का आरोप

पति-पत्नी की शादी वर्ष 2020 में हुई थी। कुछ महीनों तक साथ रहने के बाद वैवाहिक मतभेद उत्पन्न हुए। दिसंबर 2023 में पति ने तलाक-ए-अहसन के तहत एक बार तलाक बोला और गवाहों की उपस्थिति में नोटिस भेजा। 90 दिन की इद्दत अवधि के दौरान पति-पत्नी ने पुनः साथ नहीं रहना शुरू किया, जिससे तलाक प्रभावी हो गया। हालांकि, पत्नी ने बाद में भुसावल बाजार पेठ पुलिस स्टेशन (जलगांव) में एफआईआर दर्ज कराते हुए दावा किया कि यह तलाक 2019 के अधिनियम के अंतर्गत अवैध है। उसने यह भी आरोप लगाया कि ससुरालवालों ने भी इसमें भूमिका निभाई। (Only triple talaq is banned, not talaq-e-ahsan. FIR against Muslim man quashed)

कोर्ट का निर्णय

कोर्ट ने कहा कि 2019 का कानून केवल तलाक-ए-बिद्दत पर लागू होता है, न कि तलाक-ए-अहसन पर। तलाक-ए-अहसन मुस्लिम पर्सनल लॉ में एक मान्य प्रक्रिया है, जिसमें सुलह की संभावना बनी रहती है। कोर्ट ने यह भी कहा कि ससुरालवालों पर एफआईआर करना उचित नहीं है क्योंकि तलाक का निर्णय पति द्वारा अकेले लिया गया होता है। भारतीय दंड संहिता की धारा 34 (साझा आपराधिक मंशा) को भी इस मामले में लागू नहीं माना गया। आखिरकार हाईकोर्ट ने एफआईआर और भुसावल कोर्ट में लंबित आपराधिक मामले को रद्द कर दिया है। (Only triple talaq is banned, not talaq-e-ahsan. FIR against Muslim man quashed)


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