- महंगाई, बढ़ते हुए भारी टैक्स और मानसून की मार से त्रस्त है जनता।
- क्या समय से पहले ही भंग होगी संसद?
- संसद का सामना करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही बीजेपी सरकार।
- भाजपा की सत्ता 23 राज्यों मे से सिर्फ छः राज्यों में ही सिमट कर रह गई है।
- आगामी मध्यप्रदेश, तेलंगाना, राजस्थान जैसे राज्यों में होने वाले चुनाव में भाजपा की हार तय।
- बीजेपी को हराने के लिए कमर कस चुकी है महाराष्ट्र की जनता।
- आरएसएस भी मान चुकी है फेल हो चुका है मोदी का मैजिक।
- मुख्य चुनाव आयुक्त की टिप्पणी से लगता है चुनाव आयोग वही करेगा जो सरकार कहेगी।
- 2024 में मोदी की सत्ता का जाना तय।
सुरेंद्र राजभर
मुंबई- देश में इस समय बीजेपी की सत्ता के प्रति असंतोष का जो माहौल है। इसी बीच रोटेशन पद्धति से इस वर्ष G-20 की मेजबानी भारत को मिलनी तय थी। जिसे बीजेपी सरकार बड़े गर्व से मोदी की उपलब्धि बताने के लिए दिल्ली में बड़े बड़े होर्डिंग लगाए हैं। जो खुद मोदी के गले की फांस बनता जा रहा है।
क्या समय से पहले ही भंग होगी संसद?
जनता आज महंगाई, बेरोजगारी, बढ़ते भारी टैक्स और मानसून की मार से त्रस्त है। बीजेपी सरकार संसद का सामना करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही है। यदि G-20 बैठक के पूर्व जैसी आशंका व्यक्त की जा रही है, कि बैठक के पूर्व ही यदि लोकसभा भंग कर दी जाती है, तो G-20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी काम चलाऊ सरकार करेगी। जो बीजेपी के ऊपर धब्बा ही लगाएगी।
यदि लोकसभा चुनाव अन्य राज्यों के चुनाव के साथ ही कराए जाते हैं, तो यह स्थिति भी बीजेपी के अनुकूल नहीं होगी। अभी भाजपा 23 राज्यों में से सिर्फ छः राज्यों में ही सत्ता में है। आगामी मध्यप्रदेश, तेलंगाना, राजस्थान जैसे राज्यों में होने वाले चुनाव में भाजपा की हार तय है। ऐसे में भाजपा केवल गुजरात उत्तर प्रदेश और असम जैसे तीन राज्यों की सत्ता में सिमट कर रह जाएगी। उत्तर प्रदेश की 80 में से 40 सीट फंसने की बात खुद भाजपा भी मान रही है।
इसी महीने के आखिरी हफ्ते में पटना में विपक्षी नेताओं की बैठक होने वाली है। तेजस्वी यादव से ईडी कई बार पूछ ताछ कर चुकी है। संभव है, कि बैठक पूर्व ही तेजस्वी यादव की गिरफ्तारी हो जाए। ऐसे में क्या खतरा बन सकती है गिरफ्तारी? क्योंकि तब विहार में ओबीसी, एससी, एसटी लामबंद होकर बीजेपी के खिलाफ उठ खड़ी होगी। महाराष्ट्र की जनता भी बीजेपी को हराने के लिए कमर कस चुकी है। आरएसएस भी मान चुका है कि एक अकेला सब पर भारी की घोषणा करने वाले मोदी का मैजिक फेल हो चुका है। इसलिए पुराने आरएसएस के रणवीर लोगों को चार्ज करने में लगी है।
अगर सितंबर पूर्व लोकसभा भंग नहीं होती तो किसान आंदोलन, महिला रेसलर, मंहगाई, एमएसपी के साथ ही राहुल गांधी की सदस्यता रद्द होने, अडानी के मामले में हिडेनवर्ग की रिपोर्ट, सेल कंपनी द्वारा अडानी डिफेंस में लगाया गया 20 हजार करोड़ का मुद्दा पुनर्जीवित होगा। तब लोकसभा और राज्यसभा में सरकार परेशानी में पड़ेगी। अब अगर दिसंबर 2023 तक विधानसभाओं के होने वाले चुनाव के साथ लोकसभा चुनाव होंगे। जैसा कि मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर टिप्पणी से लगता है कि चुनाव आयोग वही करेगा जो सरकार कहेगी।
लेकिन राज्यों के चुनाव के साथ ही लोकसभा का चुनाव चार पांच चरण में करने पर बीजेपी के पास चुनाव प्रचार के लिए समय कम मिलेगा। गर्मी के अप्रैल मई में यदि चुनाव होंगे तो बीजेपी के बड़े फॉलोअर्स घर से नहीं निकलेंगे। किसान मजदूर सभी नाराज हैं। महिला खिलाड़ियों के प्रति हिकारत बीजेपी पर भारी पड़ेगी। वैसे भी सत्ता परिवर्तन का सिंबल नई संसद में लगाकर मोदी सत्ता हस्तांतरण का संकेत दे चुके हैं।
यह प्रकृति द्वारा नीयत है। यानी 2024 में मोदी की सत्ता का जाना तय है। इतना तय है कि पीएम मोदी के गलत निर्णयों के खिलाफ चुप रहने वाले भाजपा के सांसदों, मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों के खिलाफ विपक्ष की सरकार उन्हीं हथियारों सीबीआई, ईडी और आईटी को लगायेगी जिनका दुरुपयोग मोदी सरकार ने विपक्षी नेताओं के खिलाफ किया है और कर रही है। आश्चर्य नहीं कि लोकसभा चुनाव की घोषणा होते ही भाजपा के दिग्गज नेता बीजेपी छोड़ने की होड़ में लग जायेंगे।
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