इस्माईल शेख
मुंबई- सामाजिक कार्यकर्ताओं ने मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना के तहत तीर्थ स्थलों की यात्रा के लिए वित्तीय सहायता देने में अल्पसंख्यकों (Minorities) के साथ भेदभाव का आरोप लगाया है। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को लिखे पत्र में ईसाई और मुस्लिम समुदायों के वरिष्ठ नागरिकों के लिए आवर लेडी ऑफ वेलंकन्नी और अजमेर शरीफ दरगाह जैसे तीर्थ स्थलों को जोड़कर पात्र धार्मिक स्थलों की सूची में संशोधन करने का अनुरोध किया गया है।
जून के महीने में महाराष्ट्र में तीर्थ यात्रा योजना की घोषणा के साथ, राज्य सरकार ने वरिष्ठ नागरिकों को सरकार द्वारा सूचीबद्ध 139 स्थानों में से एक तीर्थ स्थल पर जाने का अवसर प्रदान किया है। इस सूची में ईसाई और मुस्लिम धर्म स्थलों को शामिल नही किए जाने को लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं ने विरोध जताते हुए राज्य के मुख्यमंत्री से बाकी धार्मिक स्थलों को भी शामिल करने का अनुरोध किया है।
तीर्थ यात्रा योजना
योजना के तहत 60 वर्ष से अधिक आयु के वरिष्ठ नागरिकों को, जिनकी वार्षिक आय 2.50 लाख रुपये से कम है, उनको महाराष्ट्र सरकार तीर्थ स्थलों की यात्रा के लिए 30,000 रुपये की वित्तीय सहायता का प्रदान करेगी। हालांकि, सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि यह योजना अल्पसंख्यक समुदायों के साथ भेदभाव करते हुए तैयार किया गया है। सामाजिक संस्था ‘वॉचडॉग फाउंडेशन’ के कार्यकर्ताओं द्वारा बुधवार को मुख्यमंत्री को लिखे गए पत्र में अल्पसंख्यक समुदायों के लिए महत्वपूर्ण पूजा स्थलों को शामिल न किए जाने के बारे में चिंता जताई है। योजना का फायदा उठने के लिए PDF यहां से Download करें।
समान मौलिक अधिकार
पत्र में कहा गया है कि 14 जुलाई के सरकारी प्रस्ताव में शामिल 139 धार्मिक स्थलों की सूची में तमिलनाडु के वेलंकन्नी और राजस्थान में अजमेर शरीफ दरगाह शामिल नहीं है, जो ईसाई और मुस्लिम समुदायों के लिए अत्यधिक धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखते हैं। वॉचडॉग फाउंडेशन के ट्रस्टी और सलाहकारों द्वारा लिखे गए पत्र में कहा गया है, कि “योजना के तहत वित्तीय सहायता के लिए पात्र स्थानों की सूची से ऐसे महत्वपूर्ण अल्पसंख्यक धार्मिक स्थलों की अनुपस्थिति को भेदभावपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि यह अल्पसंख्यक समुदायों के भक्तों की समान लाभ प्राप्त करने की क्षमता को असंगत रूप से प्रभावित करता है। यह बहिष्कार पूर्ण हमारे राष्ट्र द्वारा बनाए गए समावेशी और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के विपरीत है, जहां सभी धर्मों के लिए समान व्यवहार और सम्मान का मौलिक अधिकार है।”
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