मुंबई का मद्रासी गैंगबाज, जिसके आगे हाथ बांधे खड़ी रहती थी पुलिस ‘काला बाबू’

मुंबई अंडरवर्ल्ड की दुनिया में मद्रासी गैंग का नाम सबसे तेज उभर कर सामने आया था। शराब और नशे के सामानों का तस्करी करने वाला यह गिरोह बड़ी ही तेजी के साथ अंडरवर्ल्ड की दुनिया में अपनी जगह बना लिया था। इस गिरोह के मुखिया वरदराजन मुदलियार की इजाजत के बिना इसके इलाके में पुलिस भी नहीं जाती थी।

वरदराजन मुदलियार (बाएं) के साथ एसएस कंदासामी के बेटे एसके रामासामी (फोटो- एक्सप्रेस आर्काइव)

विशेष संवाददाता
मुंबई-
कहा जाता है कि मुंबई अंडरवर्ल्ड में जब मद्रासी गैंग की शुरूआत हुई, तो उसी ने सरकारी तंत्र में संगठित तरीके से माफिया को घुसपैठ करना सिखाया। इसका मुखिया था वरदराजन मुदलियार, जिसे वरदा या ‘काला बाबू’ भी कह कर पुकारते थे। कुछ लोग उसे मुंबई का पहला हिंदू अंडरवर्ल्ड डॉन भी कहते थे। कहा जाता है कि इसके जैसा डॉन मुंबई अंडरवर्ल्ड में कभी नहीं हुआ।

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डोंगरी से दुबई

अंडरवर्ल्ड डॉन वरदराजन का पुलिस अधिकारियों से मिलने का जो तरीका था, वो आज भी एक ऐतिहासिक किस्सा है। किताब डोंगरी से दुबई तक में मशहूर पत्रकार हुसैन जैदी लिखते हैं, कि “जब पुलिस स्टेशन में चाय की जगह एक काला पेय, जिसे तब झागदार कोला कहा जाता था, पुलिस अधिकारी की मेज पर पहुंचता तो पूरा पुलिस थाना खाली हो जाता था। पुलिस वाले ऑफिस से बाहर निकल जाते थे। जिनके पास ये झागदार कोला पहुंचता, वो सारा काम छोड़ डॉन के इंतजार में खड़े हो जाता था। यही था वरदराजन का पैगाम। कोला पहुंचा, मतलब वरदराजन का संदेश आ गया कि वो मिलने आ रहा है, सारा इंतजाम कर लिया जाए।”

मद्रास में हुआ था जन्म

डॉन वरदराजन मुदलियार 1926 में मद्रास प्रेसिडेंसी के थूटुकुडी के एक साधारण से परिवार में पैदा हुआ था, जो आज तमिलनाडु में है। वरदराजन बचपन से ही कमाने की जुगत में लग गया, लेकिन जब उसे लगा कि मद्रास में वो आगे नहीं बढ़ पाएगा, तो उसने मुंबई का रास्ता पकड़ लिया। लेकिन यहां भी गुजारा उसके लिए आसान नहीं था। मुंबई पहुंचने के बाद वो वी.टी स्टेशन पर कुली का काम करने लगा। पहले तो उसने बिस्मिल्लाह शाह की दरगाह में पनाह ली फिर वहीं लोगों की सेवा भी करने लगा।

अपराध जगत में डॉन की एंट्री

वरदराजन एक बहुत ही बातुनी किस्म का शख्स था। वह जिससे भी मिलता बातों से उसे अपना बना लेता। वी.टी स्टेशन पर ही उसकी मुलाकात कुछ शराब तस्करों से हुई। वरदराजन अब तक समझ चुका था कि कुली की कमाई से पेट भरना मुश्किल है। वो भी इन तस्करों के साथ मिल गया और शराब के धंधे में उतर गया।

पहले तो वरदराजन ने शराब पहुंचाने का काम किया, फिर खुद की गैंग बनाकर तस्करी करने लगा। इस गैंग को लोगों ने नाम दिया मद्रासी गैंग। वरदराजन जब क्राइम की दुनिया में अपना ठिकाना बना रहा था, तब हाजी मस्तान और करीम लाला मिलकर मुंबई पर राज कर रहे थे। वरदराजन को समझ में आ गया था कि बिना हाजी मस्तान की मर्जी वो मुंबई में अपने धंधे को बढ़ा नहीं पाएगा। फिर क्या था, वरदराजन हाजी मस्तान से मिलने पहुंच गया।

डॉन को मिला हाजी मस्तान का साथ

हाजी मस्तान ने भी वरदराजन को अपना लिया और उसे धंधा करने की इज़ाज़त दे दी। हाजी मस्तान का साथ मिलते ही वरदराजन मुंबई अंडरवर्ल्ड पर राज करने लगा। मुंबई की आबादी में काफी संख्या में मद्रासी यानी कि तमिलनाडु के लोग बसे थे। जो मूल रूप से शहर में मजदूरी या छोटे-मोटे काम करते थे। इनके लिए वरदराजन भगवान की तरह था। इन लोगों को कोई भी जरूरत हो, तो मददगार एक ही शख्स था वरदराजन मुदलियार। यहां एक तरह से, इसी की अपनी सरकार चलती थी। पुलिस भी इसके इलाके में आने से पहले सौ बार सोचती थी। इसके साथ ही वरदराजन की तरफ से बिस्मिल्लाह शाह के दरगाह पर सैकड़ों लोगों को रोज खाना खिलाया जाता था।

मुंबई के धारावी, सायन और कोलीवाड़ा में तमिलनाडु मूल के लोग काफी संख्या में रहते थे। अंडरवर्ल्ड के मुताबिक, ये इलाके शराब की तस्करी के लिए बिलकुल सही जगह थी। यही पर वरदराजन ने अपना ठिकाना बना लिया। मुदलियार अबतक काफी नाम कमा चुका था। शराब तस्करी के साथ-साथ, सुपारी लेकर मर्डर करना, ड्रग्स की तस्करी और जमीन सेटलमेंट में भी अब ये मद्रासी गैंग उतर चुका था।

सरकारी तंत्र पर मद्रासी डॉन की पकड़

वरदराजन जब पूरी तरह से स्थापित हो गया, तब टकराव की आशंका को देखते हुए हाजी मस्तान ने इलाकों का बंटवारा कर दिया। इलाके बंटने के बाद जिस तरह से वरदराजन सरकारी तंत्र का उपयोग करते हुए अपने धंधे को बढ़ाने लगा, वैसा आजतक किसी ने नहीं किया। वरदराजन तब कहता था- लोगों को संतुष्ट रखो, लेकिन सिर मत उठाने दो।

मद्रासी डॉन वापस पहुंचा चेन्नई

कहते हैं ना शोहरत हासिल करना एक बात है और उसे बरकरार रखना दूसरी बात। वरदरजन के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। एक पुलिस अधिकारी वाई.सी. पवार के निशाने पर ये मद्रासी गैंग आ गया। वरदराजन की लाख कोशिशों के बावजूद, डॉन इस पुलिस अधिकारी को अपने पाले में नहीं कर पाया। पवार ने इस गैंग के कई सदस्यों का या तो एनकाउंटर कर दिया या फिर जेल भेज दिया। एक समय ऐसा आया कि जिस वरदराजन की इजाजत के बिना जो पुलिस वाले कभी उसके इलाके में नहीं जाते थे, वो अब उसपर शिकंजा कसने की तैयारी कर रहे थे।

हालात इतने खराब को गए कि वरदराजन को वापस चेन्नई जाना पड़ गया। जहां 1988 में उसकी मौत हो गई। मौत के बाद हाजी मस्तान ने वरदराजन के शव को चार्टेड प्लेन से मुंबई मंगवाया था। जहां उसके अंतिम संस्कार में लाखों की भीड़ इकट्ठा हुई थी।


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