Mumbai: नाबालिग बेटी से यौन शोषण के आरोप में गिरफ्तार पिता बरी — गवाही और सबूतों में मेल नहीं

मुंबई की पॉक्सो कोर्ट ने 35 वर्षीय व्यक्ति को नाबालिग बेटी से यौन शोषण के आरोप से बरी किया। अदालत ने कहा कि न तो पीड़िता और न ही उसकी मां ने कोई पुख्ता बयान दिया, जबकि मेडिकल रिपोर्ट में भी शोषण के निशान नहीं मिले।

मुंबई: एक स्पेशल POCSO कोर्ट ने 35 वर्षीय पिता को नाबालिग बेटी के यौन शोषण के आरोप से बरी कर दिया, जिसे 2022 में गिरफ्तार किया गया था।
अदालत ने साफ कहा कि गवाही और सबूतों में कोई मेल नहीं मिला, इसलिए आरोपी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

🔹 क्या था मामला

मामला कांदिवली पुलिस स्टेशन का है, जहाँ पीड़िता ने अपने पिता के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी।
शिकायत में कहा गया था कि लड़की की मां घरों में नौकरानी का काम करती है, जबकि पिता शराब के नशे में घर आते हैं।
घटना के समय पीड़िता छठी कक्षा में पढ़ती थी

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लड़की का आरोप था कि गणपति उत्सव से कुछ दिन पहले, पिता शराब पीकर घर आए, दरवाज़ा बंद कर दिया और उसे कपड़े उतारने को कहा।
वहां उन्होंने कथित तौर पर यौन शोषण किया और धमकी दी कि अगर किसी को बताया तो जान से मार देंगे।
उसने आगे कहा कि कुछ दिन बाद फिर उसने साथ सोने के लिए कहा और जब मां ने उसकी रोने की आवाज सुनी, तो मामला खुला।
इसके बाद मां-बेटी ने जाकर पुलिस में शिकायत दर्ज कराई।

🔹 अदालत में पलटी गवाही

मामला जब अदालत पहुंचा, तो पीड़िता ने अपने बयान में कहानी बदल दी
उसने कहा कि पिता ने सिर्फ मोबाइल चलाने और पढ़ाई न करने पर उसे और भाइयों को पीटा था
यौन शोषण की कोई बात उसने अपने बयान में नहीं कही।
यहां तक कि उसकी मां ने भी कहा कि पति ने कोई गलत काम नहीं किया

🔹 डिफेंस की दलील और कोर्ट का निर्णय

बचाव पक्ष की ओर से एडवोकेट सुवर्णा अवध वास्ट और राहुल डिंगणकर ने दलील दी कि
पीड़िता और मां दोनों के बयानों में कोई पुख्तापन नहीं है और
मेडिकल रिपोर्ट में भी किसी प्रकार की चोट या शोषण के निशान नहीं मिले

कोर्ट ने माना कि कोई भी सबूत या गवाही आरोपों की पुष्टि नहीं करती
इसलिए आरोपी को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया गया

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🔹 अदालत का अवलोकन

न्यायाधीश ने कहा —

“मां और बेटी दोनों ने बयान में शोषण का जिक्र नहीं किया।
मेडिकल रिपोर्ट में भी किसी प्रकार की अंदरूनी या बाहरी चोट नहीं पाई गई।
ऐसे में अदालत आरोपी को दोषी नहीं ठहरा सकती।”

⚖️ POCSO कोर्ट का रुख साफ: सबूत के बिना सज़ा नहीं

पॉक्सो (POCSO) अधिनियम के तहत नाबालिगों से जुड़ी यौन उत्पीड़न की शिकायतों पर
तेज़ कार्रवाई और सख्त सज़ा का प्रावधान है।
लेकिन अदालतों का यह भी मानना है कि
यदि गवाहों और मेडिकल साक्ष्य में मेल नहीं बैठता,
तो किसी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

🟨 मुख्य बिंदु एक नजर में

  • आरोपी पिता की उम्र: 35 वर्ष
  • मामला दर्ज: कांदिवली पुलिस स्टेशन, 2022
  • कोर्ट: स्पेशल POCSO कोर्ट, मुंबई
  • नतीजा: गवाही और सबूतों में विरोधाभास के कारण बरी
  • मेडिकल रिपोर्ट: किसी भी प्रकार की चोट नहीं पाई गई

FAQ सेक्शन

Q1. आरोपी को किस मामले में गिरफ्तार किया गया था?
→ अपनी नाबालिग बेटी से यौन शोषण के आरोप में।
Q2. कोर्ट ने उसे क्यों बरी किया?
→ क्योंकि पीड़िता और उसकी मां के बयान आरोपों से मेल नहीं खाते थे और कोई मेडिकल सबूत नहीं मिला।
Q3. मामला किस पुलिस स्टेशन में दर्ज था?
→ कांदिवली पुलिस स्टेशन, मुंबई।
Q4. पॉक्सो कानून क्या है?
→ यह कानून नाबालिगों के साथ यौन अपराधों पर कड़ी सज़ा और सुरक्षा सुनिश्चित करता है।


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