नितिन तोरस्कर (मंत्रालय प्रतिनिधि)
मुंबई- देश के दूसरे नंबर पर सबसे बड़े महाराष्ट्र राज्य में पिछले पांच सालों में वो सब हुआ है जो सोच भी नहीं सकते। भाजपा और उद्धव ठाकरे की शिवसेना का ब्रेकअप, 2019 के चुनावों के बाद पहली बार जल्दबाजी मे सवेरे तडके शपथग्रहण समारोह। इसके बाद भी उद्धव ठाकरे की ताजपोशी, फिर पहले शिवसेना और बाद में एनसीपी के दो तुकडे। इस तरह पिछले पांच सालों में महाराष्ट्र में दो सीएम बने। सबकुछ अप्रत्याशित रहा। इसके बाद भी 2024 के विधानसभा चुनावों अप्रत्याशित नतीजे सामने आए, इसमें भाजपा ने खुद अपना ही रिकॉर्ड तोड़ डाला और महाविकास अघाडी गठबंधन सिमटकर रह गई।
राज्य के विधानसभा में विपक्ष विहीन जैसी स्थिति का निर्माण हो गया, लेकिन चुनाव नतीजों के बाद अब जो हो रहा है इसकी भी किसी ने उम्मीद नहीं की थी। राज्य के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे पिछले सात दिनों से अस्वस्थ में हैं, उनका अस्पताल में इलाज चल रहा है। वहीं राज्यपाल के पास बिना दावे और बिना सीएम चयन के मुंबई के आजाद मैदान में शपथ ग्रहण की तैयारियां चल रही हैं। जबकि अभी तक मुख्यमंत्री के चहरे को लेकर सस्पेंस बना हुआ है।
सीएम की उम्मीद ..
महाराष्ट्र के राजनीतिक घटनाक्रम को लेकर अभी तक जो बातें सामने आई हैं उनमें कहा जा रहा है कि एकनाथ शिंदे को उम्मीद थी कि महायुति की सत्ता में वापसी पर वही सीएम बनेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उन्होंने खामोशी के बाद नए मुख्यमंत्री का फैसला केंद्रीय नेतृत्व यानी पीएम मोदी और अमित शाह पर छोड़ दिया है। दिल्ली में उनकी केंद्रीय नेताओं से हुई बैठक के बाद भी कोई अच्छी खबर नही आई उलटे वह खुद बीमार पड़ गए। अब महाराष्ट्र में कुछ घंटे बाद मुख्यमंत्री पद के लिए बीजेपी का चेहरा तय हो जाएगा और फिर आजाद मैदान में महायुति सरकार का शपथ ग्रहण होगा। तब तक एकनाथ शिंदे की सियासी भविष्य को लेकर सस्पेंस बना हुआ है। कहा जाता है कि वे सरकार का हिस्सा होंगे, या फिर नहीं? उनकी पार्टी से कौन डिप्टी सीएम बनेगा? कितने मंत्री होंगे? इस बारे में चर्चाऐं आम हैं। वहीं दूसरी तरफ शिवसेना के नेता लगातार सीएम शिंदे की अहमियत को गिना रहे हैं।
कौन है जिम्मेदार?
फिलहाल महाराष्ट्र की राजनीति में सवाल खड़ा हो रहा है कि महायुति सरकार की मंत्री पदों के लिए तस्वीर साफ नहीं होने के लिए कौन जिम्मेदार है? क्या शिंदे द्वारा बीजेपी के सामने रखी गई मांगों पर कोई निर्णय नहीं हो रहा है या फिर शिंदे जो दिया जा रहा है उससे संतुष्ट नहीं है? क्या शिंदे भाजपा द्वारा दिए जा रहे पदों से ज्यादा चाहते हैं? जो भी हो 23 नवंबर को विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के बाद बुधवर को 10 दिन पूरे हो गए हैं। लेकिन जितने के बाद भी महायुति गठबंधन के लिए राजनीतिक गतिरोध बना हुआ है। ऐसे में सवाल है कि राज्य में 132 सीटे जीतने वाली भाजपा शिंदे पर खामोश क्यों है और शांत क्यों बनी हुई है?
एकनाथ शिंदे की अहमियत क्या है?
महाराष्ट्र विधानसभा के संख्याबल में भले ही बीजेपी बहुमत के करीब है। उसके पास अजित पवार गुट का बिना शर्त के समर्थन भी है। ऐसे में बीजेपी चाहे तो शिंदे को अनदेखा कर सरकार बना सकती है लेकिन ऐसा संभव नहीं है क्याेंकि महाराष्ट्र की बीजेपी भले ही राज्य में मजबूत हो गई है लेकिन केंद्र की मोदी सरकार में शिंदे तीसरी बड़े घटक के तौर पर मौजूद हैं। केंद्र की सरकार में जहां बीजेपी के पास 240 सांसद मौजूद हैं वहीं एनडीए से सपोर्टर टीडीपी के पास 16 और फिर जेडीयू के पास 12 सांसद हैं। वहीं शिंदे गुट शिवसेना के सात सांसदों का सहयोग मोदी सरकार को है। कहा जा रहा है कि यही वजह है, जो एकनाथ शिंदे सेंटर की पॉलिटिक्स खेल रहे हैं। वह कह रहे हैं कि पीएम मोदी और अमित शाह जो फैसला लेंगे। वह उन्हें स्वीकार्य होगा। एनडीए के पास कुल 293 सांसदों का समर्थन है। अगर किसी भी स्थिति में नायडू और नीतीश के साथ अगर एकनाथ शिंदे रूठ जाते हैं, तो केंद्र की सरकार पर संकट आ जाएगा।
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