- भारतीय जनता पार्टी के नेता चुनावी समर भूमि में ठंडे पड़ गए हैं..
- बिहार, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में पार्टी की नीतियों का हो रहा है खामियाजा..
सुरेंद्र राय
मुंबई- बड़ा शोर है भारतीय जनता पार्टी के चुनाव प्रचार का लेकिन मोदी को छोड़कर एक भी चुनावी समर भूमि में सक्रिय नेता नहीं है। सबसे बड़ी 80 सीटों वाले उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के नेता चुनाव प्रचार में दूर दूर तक नजर नहीं आते। सबसे बड़ा हिंदुत्व चेहरा हैं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ। जिनकी देश में बड़ी मांग है, लेकिन मोदी की तरह वे कहीं भी चुनावी मूड में नहीं दिखते।
भारतीय जनता पार्टी का युपी में चुनाव प्रचार
दो दो डिप्टी सीएम हैं जो अपनी खोल से अभी बाहर ही नहीं निकल सके हैं। प्रांतीय अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी भी कहीं नमूदार नहीं हो रहे। बड़े जोर शोर से ढिंढोरा पिटा गया था, चौधरी चरण सिंह के पोते जयंत चौधरी का। उन्हें गाजे बाजे के साथ भारतीय जनता पार्टी में लाया गया। यह सोचकर कि उनके दादा चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देकर पश्चिमी यूपी की सारी सीटें बिना प्रचार किए भारतीय जनता पार्टी की झोली में आ गिरेंगी। परंतु अभी भी जयंत चौधरी पशोपेश में हैं। किसान बिरादरी उनके बीजेपी में जाने पर उनसे दूरी बना ली है। अब वे किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह की तरह किसानों के नेता नहीं रह गए हैं। बिना संख्या बल के वे भारतीय जनता पार्टी को कितनी सीटें दिलाएंगे खुद समझ नहीं पा रहे। चुनाव प्रचार तो बड़ी दूर की कौड़ी है उनके लिए। हालत यह हो गई है, “आधी छोड़ सारी को धावे। आधी मिले न सारी पावे।”
तुरूप का इक्का ..
भारतीय जनता पार्टी के साथी अनुप्रिया पटेल और बड़बोले अस्तित्वहीन ओमप्रकाश राजभर जिनकी अमित शाह ने उत्तर प्रदेश सरकार में ताजपोशी कराई है। छवि बेहद खराब होने से जनता उनसे कन्नी काटने लगी है। मेनका गांधी और संतोष गंगवार यूपी के आठ आठ बार सांसद रहे हैं। लेकिन उनके टिकट ही पक्के नहीं हुए हैं। करें भी तो क्या? टिकट मिलेगा या नहीं? कहा भी नहीं जा सकता। तुरूप का इक्का होने से रहे।
बिहार की संसदीय गठबंधन ..
सांसदों के लिहाज से बिहार में 40 सीटें होने से बिहार का बड़ा महत्त्व है। वहां गठबंधन तुड़ाकर नीतीश कुमार को भारतीय जनता पार्टी अपने पाले में भले ले आई है लेकिन जनता में उनकी पलटू चाचा की छवि बनने से उनकी खुद की छवि को बड़ा धक्का लगा है। जनता में उनकी पूछ नहीं रही। सुशील मोदी ज़रूर बड़ा चेहरा बने थे, लेकिन वे कहीं चुनाव प्रचार करते नहीं दिखते। राजीव प्रसाद रूडी का कहीं अता पता नहीं है। हरदम मोदी नाम की माला जपने और विपक्षी दलों को बुरा भला कहने वाले रवि शंकर प्रसाद नदारत हैं। उनके अलावा सम्राट चौधरी, गिरिराज सिंह और चौबे सांसद रहे हैं। बड़बोले भी लेकिन चुनाव प्रचार में वे दोनो दूर दूर तक नजर नहीं आते। गिरिराज सिंह का हाल यह है, कि उनकी भारतीय जनता पार्टी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने मुर्दाबाद के नारे लगाए और काले झंडे दिखाकर उन्हें क्षेत्र में आने ही नहीं दिया।
महाराष्ट्र में चुनाव प्रचार ..
सीट के लिहाज से महाराष्ट्र 48 सीटों वाला बड़ा महत्त्वपूर्ण राज्य है। यहां के सबसे बड़े नेता हैं नितिन गडकरी जो भारतीय जनता पार्टी की नीतियों के धुर विरोधी रहे हैं। मुमकिन नहीं कि वे चुनाव प्रचार करेंगे। शिवसेना और राकांपा तोड़कर शिंदे और अजीत पवार के साथी छगन भुजबल, पटेल आदि पर खुद भारतीय जनता पार्टी ने हजारों करोड़ के घोटाले का मामला उठाकर उन्हें अपने साथ लाकर सरकार तो बना ली लेकिन महाराष्ट्र की जनता उन्हें गद्दार कहकर नफरत करती है। कुछ समय बाद विधानसभा चुनाव होने हैं। उस चुनाव को याद कर ही सिहरने वाले ये नेता चुनाव प्रचार की हिम्मत भला कैसे दिखाएंगे? अपने ही बड़े नेता पूर्व मुख्यमंत्री का कद छोटा कर डिप्टी सी एम बनाने वाली भारतीय जनता पार्टी उनसे चुनाव में कोई उम्मीद कैसे कर सकती है।
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