- आखिर क्यों सोया रहता है रेल मंत्रालय कुंभकरणी नींद?
- क्या रेल मंत्रालय के पास दुर्घटना रोकने के लिए टेक्नोलॉजी नहीं है?
- रेल मंत्रालय को चलाई जा रही ट्रेनों की सुरक्षा व्यवस्था पर विशेष ध्यान देने की है जरूरत।
- रेल पटरी से उतरती क्यों है? कोई भी हादसा क्यों होता है?
- तीन ट्रेनों का टकराना भयावहता सोचने को बाध्य।
सुरेंद्र राजभर
मुंबई- बालासोर ट्रेन दुर्घटना जिसमें कई सौ यात्रियों की मौत हुई। हजारों बच्चे युवा, बुजुर्ग बुरी तरह घायल हो गए है। तीन ट्रेनों का इस तरह टकराना जिसकी भयावहता सोचने को बाध्य करती है, कि आखिर रेल मंत्रालय कुंभकर्णी नींद में क्यों सोया रहता है। एक और दुर्घटना की प्रतीक्षा में!
रेल मंत्रालय..
दावे बड़े बड़े, मेट्रो, हाई स्पीड रेल, जापान, चीन जैसी बुलेट ट्रेनें चलाने के दावे करने वाली रेल मंत्रालय के पास दुर्घटना रोकने के लिए टेक्नोलॉजी नहीं है या है तो उसका उपयोग क्यों नहीं किया जाता? क्या धन की कमी है या इच्छाशक्ति की?
हालाकि सरकार की तरफ से एंबुलेंस, ट्रक्स, तमाम अस्पतालों को इमरजेंसी में बदल दिया गया है। फिर भी कुछ न कुछ गड़बड़ ही है। नई नई तेज-रफ्तार ट्रेनें चलाइए। सुदूर की यात्रा में समय कम लगे अच्छी बात है, लेकिन कम से कम जितनी ट्रेनें चलाई जा रहीं हैं पहले उनकी सुरक्षा व्यवस्था पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है।
हर हादसे की जांच के दावे होते रहते हैं। बहुत हुआ तो फोर्थ क्लास के कर्मचारियों को निलंबित कर कर्तव्य पूर्ति कर ली जाती है। सवाल यह है, कि देश की लाइफ लाइन कही जाने वाली रेल पटरी से उतरती क्यों हैं? कोई भी हादसा होता क्यों है? क्यों नहीं सुरक्षा उपाय में भ्रष्टाचार और कोताही खत्म की जाती?
अब यह तो नहीं कहा जा सकता, कि लालबहादुर शास्त्री ने एक रेल हादसे के बाद अपनी जिम्मेदारी मानकर मंत्री पद से इस्तीफा नैतिकता (morality) के आधार पर दिया था।भले वर्तमान रेल मंत्री इस्तीफा नहीं दे लेकिन जवाबदेही तो माननी ही होगी कि व्यवस्था में कहीं न कहीं कमी जरूर है।
उन सारी कमियों को पहले दूर करने की जरूरत है। आप दो चार नई ट्रेनें चलाने की योजना चंद दिनों के लिए रोक सकते हैं और उस पर आने वाली लागत से दुर्घटना नहीं हो इसकी व्यवस्था करनी ज़रूरी है। इतनी नैतिकता की तो अपेक्षा की ही जा सकती है। रेल मंत्रालय मानवीय भूल को कारण बताकर अपनी जिम्मेदारी से भाग नहीं सकती।
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