- शुरू से ही छल फरेब किया जाने लगा था महिला खिलाडियों के साथ।
- शारीरिक शोषण की शिकायत पर
- सिस्टम ने नहीं दिया ध्यान।
- एफ आई आर तक नहीं लिखी गई।
- सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप पर एफ आई आर हुई दर्ज।
- पीएम मोदी को खिलाडियों ने लिखी पांच पेज की चिट्ठी।
- चिट्ठी में खिलाडियों ने लिखा हम अपने मेडल किसे सौंपे?
सुरेंद्र राजभर
मुंबई- अन्याय के खिलाफ आवाज उठाते हुए महिला खिलाड़ियों ने सम्मानित मेडल वापस करने का फैसला किया है। सिस्टम आप का फायदा उठा सकता है। आप के नाम पर वोट मांग सकता है। आप पर अन्याय और जुल्म होते देखकर आंखें मूंद सकता है। अपराधी को बचा सकता है। यहां तक, कि आप को कानूनी फंदे में फंसा भी सकता है। वह सब कुछ कर सकता है जिसमें उसका स्वार्थ सिद्ध होता हो। बेशक!
सिस्टम आप को न्याय नहीं दे सकता ..
जो नहीं कर सकता वह है, ‘न्याय’। सिस्टम आप को ‘न्याय’ नहीं दे सकता। महिला खिलाडियों के साथ शुरू से ही छल फरेब किया जाने लगा था। सिस्टम ने उनके शारीरिक शोषण की शिकायत पर ध्यान तो दूर कान तक नहीं दे सका। शिकायत पर एफआईआर तक नहीं लिखी गई। सुप्रीमकोर्ट के हस्तक्षेप पर एफआईआर तो दर्ज हो गया, लेकिन पाक्सो कानून (POCSO) नहीं लगाया। उधर आरोपी खुलेआम घूमता रहा। उलटे खिलाड़ियों पर आरोप लगाता रहा। क्योंकि वह खुद उस सड़े गले सिस्टम का हिस्सा है।
शुरू से ही छल फरेब..
सिस्टम उसे बचाने में सारी पैंतरेबाजी करता रहा। यहां तक कि न्याय मांगने के लिए जंतर मंतर से जबरन उन्हें उठा फेंका गया। अब पीड़िता खिलाड़ी खेतों में छुपने की जगह ढूंढ रही है। सुप्रीमकोर्ट की छुट्टियां चल रही है। हर तरफ से निराश महिला खिलाड़ियों ने पांच पेज की चिट्ठी लिखकर पीएम मोदी को छः बजे तक का अंतिम समय देने के बावजूद सिस्टम कानों में रुई डालकर सोता रहा। कारण सिस्टम अपने खिलाफ एक भी आवाज सुन नहीं सकता।बेरहम हो गया है सिस्टम।
मेडल किसे सौंपें..
खिलाड़ियों ने लिखा हम अपने मेडल किसे सौपें? राष्ट्रपति को? नहीं, मन नहीं करता क्योंकि पांच सौ मीटर दूर बैठी महिला राष्ट्रपति ने उनकी फरियाद सुनी ही नहीं। चुप बैठी रहीं या फिर पीएम को सौप दें मेडल? नहीं, वे खिलाड़ियों के मेडल जीतने पर बधाई दे सकते हैं। चुनाव में खिलाड़ियों के मेडल का फायदा उठा सकते हैं। लेकिन न्याय नहीं कर सकते बल्कि आरोपी के साथ ही संसद का उद्घाटन कर सकते हैं। लेकिन महिला खिलाड़ियों के साथ न्याय नहीं कर सकते। जबकि खिलाड़ी उनसे न्याय की गुहार करते रहे थे, लेकिन सिस्टम का दिल नहीं पसीजा। उनके लिए बेटियां भी चुनावी स्टंट से ज्यादा कुछ नहीं हैं।
मेडल को गंगा में प्रवाहित करने का फैसला ..
फिर क्या करें महिला पीड़िता? किसको सौपे मेडल? गंगा मां को जो पवित्र हैं। मां उसकी बेटियों का दर्द ज़रूर समझेगी। हां हरिद्वार जाकर गंगा मां की जलधार में अपने मेडल प्रवाहित करेंगी। क्यों कि अब मेडल के साथ उनके जीवित रहने का कोई मतलब ही नहीं है। इसके बाद वे इंडिया गेट पर आमरण अनशन करेंगी। वे शहीदों की तरह पवित्र तो नहीं हैं। जो शहीद देश के लिए मृत्यु का आलिंगन करते हैं। तो खिलाड़ियों ने कड़ी मेहनत कर मेडल देश के लिए जीते हैं। सिस्टम से उन खिलाड़ियों को तो न्याय ही नहीं मिला। इसलिए मृत्यु का ही अंतिम विकल्प शेष है। इसी हेतु अपने मेडल गंगा मां की गोद में विसर्जित कर मृत्यु का वरण करना ही श्रेयस्कर समझकर अब इंडिया गेट पर आमरण अनशन पर बैठेंगी, वहीं उनके प्राण निकलेंगे।
इंडिया गेट पर आमरण अनशन शन..
लेकिन निश्चित ही महिला खिलाड़ियों को इंडिया गेट पर ‘तंत्र’ आमरण अनशन नहीं करने देगा। शायद तब तक सुप्रीमकोर्ट के दरवाजे खुल जाएं और पीड़िता महिला खिलाड़ियों के समर्थक वकील खुद याचिका डाल दें?
अभी किसी भी निष्कर्ष तक पहुंच पाना मुश्किल है। देश देख रहा है। अनुभूति हो रही है पीड़िता खिलाड़ियों के दर्द की। निश्चित ही यदि सुप्रीमकोर्ट में महिला पीड़ित खिलाड़ियों की तरफ से याचिका उनके प्राण बचाने के लिए डाली जाएगी तो सुप्रीमकोर्ट निश्चित ही एक्शन में आएगा। तब क्या होगा? किसे पता?
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