इस्माइल शेख
मुंबई- महाराष्ट्र के 18 प्रवासी मजदूर एक सीमेंट के मिक्सर में बैठकर लखनऊ जा रहे थे! इंदौर में ट्रैफिक पुलिस ने जांच के दौरान सभी को मिक्सर मशीन से बाहर निकाला! ‘कोरोना’ वायरस से बचने के लिए सरकार ने ‘लॉकडाउन’ की घोषणा की हुई है! पहले 21 दिन, बाद में 19 दिन और अब पूरे 40 दिन पूरे होने के बाद 17 मई तक के लिए केंद्र सरकार ने ‘लॉकडाउन’ को बढ़ा दिया है!
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इस दौरान प्रत्येक राज्य के लाखों मजदूर और कामगार दूसरे राज्यों में मजदूरी के लिए गए हुए थे! वे लोग खुले आसमान अथवा छोटी सी खोली में 5 से 10 लोग रहकर अपना जीवन यापन कर रहे थे! यकायक सरकार ने 4 घंटे के नोटिस में ‘लॉकडाउन’ लागू करते हुए ट्रेन और बस सेवा बंद कर दी! प्रत्येक राज्य में इससे लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूर फंसकर रह गए! सोशल डिस्टेंसिंग निभाना तो दूर इनके खाने-पीने की व्यवस्था भी खत्म हो गई! जिन जगहों पर यह मजदूर रह रहे थे, उनके लिए संभव ही नहीं कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर सकें!
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सरकार को ऐसी स्थिति में ‘लॉकडाउन’ लागू करने के पहले उन्हें घर भेजने की व्यवस्था अथवा उनके रहने और खाने पीने के लिए पुख्ता इंतजाम किये जाने चाहिए थे! सत्ता में बैठे राजनेताओं और प्रशासकीय अधिकारियों ने इन गरीब लोगों के बारे में कुछ नहीं सोचा! तुगलकी फरमान के रूप में दूसरे देशों में व्यापक परिणामों को देखते हुए ‘लॉकडाउन’ लागू कर करोड़ों गरीबों का जीवन दांव पर लगाने का काम किया है!
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लॉकडाउन लागू करते समय केंद्र एवं राज्य सरकारों ने बड़े-बड़े वायदे किए! लेकिन सारे वायदे और सारी संवेदनशीलता शासन और प्रशासन में कहीं भी देखने को नहीं मिली! प्रशासन से ज्यादा स्थानीय संस्थानों ने आगे बढ़कर मानवता का परिचय दिखाया, एनजीओ के लोग जरुरत मंद के घरों तक जाकर लोगों को राशन सामग्री बांट रहे हैं! सोशल मीडिया पर इसका प्रमाण देखा जा सकता है! उसके बाद भी केंद्र और राज्य सरकारों तथा नेताओं की संवेदनशीलता जैसे मर गई है! लाखों मजदूर अपनी जान बचाने के लिए पैदल ही अपने घर जाने के लिए निकल पड़े! जगह-जगह उन्हें रोका गया, वहीं क्वॉरेंटाइन सेंटर बनाए गए, उनमें खाने-पीने और रहने की कोई समुचित व्यवस्था नहीं की गई! सारे लोगों को एक जगह बंद करके रख दिया गया! जिस जगह पर लोग काम कर रहे थे! वहां के लोगों ने कुछ समय तक तो उनकी मदद की! जब वह भी मदद नहीं कर पाए तो वहां पर मजदूरों को उनके हाल में छोड़ दिया गया! रास्ते में उन्हें रोका गया पीटा गया! इनका कसूर क्या था, बस गरीबी!
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हाल ही में महाराष्ट्र से लखनऊ जा रहे एक सीमेंट मिक्सर मशीन मे से18 लोगों को इंदौर पुलिस ने पकड़ा! मिक्सर मशीन में बैठकर लखनऊ जा रहे 18 सभी आदमी थे, लेकिन मरने से बचने के लिए यह पशुओं की तरह छिपकर मिक्सर के अंदर सफर कर रहे थे! भीतर रोशनी और हवा भी मिलना मुश्किल होता है! एक ही देश में एक स्थान से दूसरे स्थान जाने के लिए गरीबों को अपनी जान बचाने के लिए यदि यह करना पड़ रहा है! तो ऐसी स्थिति किसी भी सरकार के लिए शर्म की बात है! हमारी संवेदनशीलता और समझदारी जैसे कुछ विशिष्ट वर्ग के लिए ही रह गई है! भारत में विभिन्न राज्यों में करोड़ों मजदूर अपनी जान बचाने के लिए घर जाना चाहते हैं!
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‘लॉकडाउन’ के 38 दिनों के बाद घर भेजने की केंद्र सरकार की व्यवस्था शुरू हुई! उसमें भी रेलवे ने इन गरीब मजदूरों से टिकट के पैसे लेकर यात्रा करने दी! नासिक से भोपाल के लिए एक स्पेशल ट्रेन से 300 मजदूरों को भेजा गया! वहां मजदूरों ने बताया कि उनसे प्रति मजदूर 315 रुपए वसूल किए गए हैं! भारत सरकार और राज्य सरकारें इन गरीब मजदूरों को लेकर जो गैर जिम्मेदारी और उपेक्षा का व्यवहार कर रही हैं! उसके बारे में यही कहा जा सकता है, कि ‘इतिहास में ऐसे बहोत सी घटनाऐं बीत चुके हैं जिसको दोहराया नही जाना चाहिए!’ ध्यान रहे कि इनसान भूख की आग को बुझाने के लिए बीना सोचे समझे कुछ भी कर बैठता है! वहीं वर्तमान नेताओं और राजनीतिक दलों को यह भी समझना होगा, कि भीड़ तंत्र से बड़ा कोई लोकतंत्र नहीं है! आज गरीबों की भीड़ सड़कों पर दिख रही है! यदि इनके सामने इसी तरीके का संकट कुछ दिन और चला, तो इसको फिर संभालना बड़ा मुश्किल होगा! फिल्हाल देश और दुनियां की स्वास्थ्य संगठनों की तर्ज पर हम भी यही कहेंगे, लोग अपने घरों में ही सुरक्षित रह कर ‘कोरोना’ वायरस के संकट से लड़े बाहर की हवा जहरीली होती जा रही है! देश में संक्रमण और मौत की संख्या रुकने का नाम नही ले रही है!
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