इस्माइल शेख
मुंबई– शुक्रवार 31 जुलाई को ईद उल-अज़हा की नमाज पढ़ी जानी है! मुस्लिम धर्म के इस त्योहार को बकरा ईद भी कहा जाता है! कोविड-19 के कारण राज्य में सभी धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम पर पाबंदी लगाई हुई है! पिछले चार महीनों के बीच कई महत्वपूर्ण धार्मिक एवं सांस्कृतिक त्योहार एवं कार्यक्रमों पर लोगों ने अपनी भावनाओं को दबाए रखा! ऐसे ही इस ईद पर भी सरकार ने मस्जिद और ईदगाह पर लोगों के इकट्ठा होने पर पाबंदी लगाई हुई है! साथ ही कुर्बानी के लिए उद्धव सरकार की ओर से नियम जारी किया गया है!
ईद-उल-अज़हा इस्लाम धर्म में विश्वास करने वाले लोगों का एक प्रमुख त्यौहार है! रमजान के पवित्र महीने की समाप्ति के लगभग ७० दिनों बाद इसे मनाया जाता है! ईद-उल-अज़हा यानी आम तौर पर कहे जाने वाला बकरा ईद “हजरत इब्राहिम” की कुर्बानी की याद में ही मनाया जाता है! हजरत इब्राहिम अल्लाह के हुकुम पर अपनी वफादारी दिखाने के लिए बेटे इस्माइल की कुर्बानी देने को तैयार हुए थे! इस्लाम की पवित्र पुस्तक कुरआन में ऐसा वर्णन मिलता है, कि “एक दिन अल्लाह तबारक व तआला ने ‘हज़रत इब्राहिम’ से सपने में उनकी सबसे प्रिय चीज की कुर्बानी मांगी! ‘हज़रत इब्राहिम’ को सबसे प्रिय अपना बेटा लगता था! उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देने का निर्णय लिया!
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लेकिन जैसे ही हज़रत इब्राहिम ने अपने बेटे को अल्लाह की राह में किर्बान करने के लिए हजरत इस्माइल की गर्दन पर वार किया! अल्लाह चाकू की वार से ‘हज़रत इब्राहिम’ के पुत्र को बचाकर एक बकरे (जात का दूंबा) की कुर्बानी दिलवा दी! इसी वाक्ये को इस्लाम धर्म के लोग उनकी खुदा की राह में कुर्बानी को याद करके बकरा ईद मनाते हैं!
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इस्लाम धर्म के मुताबिक ईद उल-अज़हा (बकरा ईद) का मुख्य उद्देश्य इमान को ताज़ा करना है! जैसे खुदा के प्रति हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने अपनी वफादारी का सबूत पेश करते हुए अपने सबसे अज़ीज़ बेटे तक को कुर्बान करने को राज़ी हो हए! जो बयां करता है कि इस्लाम धर्म की नीव वफादारी पर टिकी हुई है! ईद-उल-ज़ुहा (बकरीद) का यह पर्व इस्लाम के पांचवें सिद्धान्त हज को भी मान्यता देता है! जो इस वर्ष विश्वव्यापी कोविड-19 की वजह से तर्क कर दिया गया है!
ईद-उल-ज़ुहा (बकरीद) के दिन मुसलमान किसी जानवर जैसे बकरा, भेड़, ऊंट आदि की कुर्बानी देते हैं! कुर्बानी के गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है! एक खुद के लिए, दूसरा सगे-संबंधियों के लिए और तीसरा गरीबों के लिए! इस दिन सभी पाक और नए कपड़े पहनकर विशेष नमाज पढ़ते हैं! मर्दों को मस्जिद व ईदगाह और औरतों को घरों में ही पढ़ने का हुक्म है! नमाज पढ़कर आने के बाद ही कुर्बानी की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है! ईद उल फितर की तरह ईद-उल-ज़ुहा में भी ज़कात देना अनिवार्य होता है ताकि खुशी के इस मौके पर कोई गरीब महरूम ना रह जाए!
इस बार भी पिछली रमजान ईद की तरह मसजिदों और ईदगाहों पर नमाज की पाबंदी लगाई गई है! जो जनवरों के बाजार चालू हुए थे, उन्हें भी बंद कर दिया गया है! सरकार ने फरमान जारी करते हुए कहा है, कि लोगों को जानवर की खरीदी ऑनलाइन अथना फोन पर की जा सकती है! प्रतिबंधित क्षेत्र (कंटेनमेंट ज़ोन) पर वर्तमान में जारी पाबंदियां, लोगों को पालन करना अनिवार्य होगा! कही भी सार्वजनिक भीड़ इकट्ठा नहीं होनी चाहिए!
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आप को बता दें की कंटेनमेंट ज़ोन उसे कहा जाता है, जहां कोरोना के संदिग्ध मरीज पाए गए हैं! एसी जगहों को प्रशासन ने सील कर लोगों को घर से बाहर निकलने में पाबंदी लगाई हुई है! सिर्फ जरूरी काम के लिए ही घर से निकल सकते हैं! बेवजह घूमने वालों पर प्रशासन कार्रवाई कर सकती है!
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इसके अलावा महाराष्ट्र भर में नियमों का पालन करते हुए मुस्लिम समाज ईद उल-अज़हा की नमाज अपने घरों में ही अदा करेंगें! कुर्बानी के लिए सफाई और नियमों का पालन करना अनिवार्य होगा! आशा करते हैं कि जिस तरह हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने अपनी वफादारी पेश करते हुए अपने बच्चे तक को अल्लाह की राह में कुर्बान करने को राज़ी हो गए थे! उनकी सिख पर अमल करने वाले मुसलमान भाई भी देश और राज्य एवं अपने पड़ोसीयों के प्रति वफादारी और इमानदारी का सबूत पेश करने से पीछे नही हटेंगे!
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