संपादकीय
जिस कलाबाजी से भाजपा के हाथों में खेलकर शिंदे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बन गए उन्हें क्या पता कि उनकी एक चूक उनकी नैया डुबो देगी। उद्धव गुट भी सुप्रीमकोर्ट चला गया है। सुप्रीमकोर्ट के सीनियर एडवोकेट ने कोर्ट में जो मजबूत दलीलें दी हैं। चुनाव आयोग ने जिस तत्परता के साथ शिंदे गुट को शिवसेना नाम और धनुष बाण निशान थाल में सजाकर सौंपा कोई भी सहजता से नहीं ले सकता। सबके मन में सवाल कौंधते हैं कहीं दबाव में तो जल्दीबाजी नहीं दिखाई चुनाव आयोग ने? मुख्य चुनाव आयुक्त की आनन फानन में सरकार द्वारा नियुक्ति फिर शिंदे गुट को तोहफे देना कुछ अन्याय नहीं लगता क्या? विधायक राजनीतिक दल नहीं होते पार्टी अध्यक्ष, पदाधिकारी और समर्पित कार्यकर्ता ही पार्टी निर्माण करते हैं। विधायकों को जिताने में कार्यकर्ताओं का बड़ा हाथ होता है। भाजपा को देखिए। बूथ स्तर पर ही नहीं पन्ना प्रमुख की अनिवार्यता से शक्तिकेंद्र छोटे छोटे केंद्र बनाते हैं। पन्ना प्रमुख पच्चीस बीस परिवार के वोटरों तक पहुंच बनाते हैं। प्रचार के बूते कोई चुनाव नहीं जीतता।जीत होती है तो निचले स्तर के पार्टी कार्यकर्ताओं से।विधायक आज है कल नहीं रहेगा। उसकी जगह कोई और चुनाव लड़कर जीत हासिल करेगा फिर विधायक के स्थान पर दूसरा कोई विधायक बनेगा। विधायक आते जाते रहते हैं।विधायक पार्टी हो ही नहीं सकता। वह सिर्फ विधानसभा का मेंबर बनता है लेकिन पार्टी कार्यकर्ता पार्टी बने रहते हैं। सर्वविदित तथ्य यही है कि शिंदे एंड कंपनी ने शिवसेना तोड़कर भले सरकार बना लिया हों लेकिन शिवसैनिकों की आत्मा जीत नहीं सकते। कुछ एक चुनाव क्षेत्र पर भले ही शिंदे एंड कंपनी जीत ले लेकिन चुनाव प्रचार के समय शिवसेना के सवाल का ज़वाब शिंदे को देने होंगे। उद्धव ठाकरे के साथ पूरे महाराष्ट्र के शिवसैनिक हैं। शिंदे ने सोचा ही नहीं होगा। शिवसैनिक बाला साहब ठाकरे के प्रति वफादार हैं। वे शिवसेना से अलग होकर मनसे बनाने वाले सगे भतीजे के नहीं हुए तो शिंदे के क्या होगें।
सुप्रीमकोर्ट मुख्य चुनावआयुक्त सहित कई मामले सुन रहा है। संभव है वह शिंदे की ताजपोशी को ही नकार दे। असंवैधानिक बता दे।तब क्या होगा? शिंदे अपने बूते ठाणे में अपनी सीट भी नहीं निकाल पाएंगे। तो अपने सहयोगियों के लिए क्या कर पाएंगे?
दूसरी बात शिंदे ने विधायकों के हस्ताक्षर युक्त जो पत्र सौपे थे सरकार बनाने के लिए।उस पत्र में हस्ताक्षरों की जांच की जा रही है। सूत्र बताते हैं कि उसने कई विधायकों के हस्ताक्षर असली नहीं हैं। जब यह प्रमाणित हो जाएगा जैसा कि डिप्टी अध्यक्ष का कहना है। प्रमाण मिलने पर कार्रवाई होगी। तीसरी बार यह कि शिंदे उद्योग लगाने पर गंभीर नहीं थे। कई बड़े उद्योग गुजरात और अन्य प्रदेशों में चले गए।जबकि भाजपा के साथ शिंदे का पैक है। शायद शिंदे समझ नहीं पाए भाजपा की चाल को। भाजपा ने शिवसेना को इसलिए तोड़ा ताकि सत्ता का लाभ 2024 लोकसभा चुनाव में लिया जाए और फिर शिंदे को दूध की मक्खी की तरह निकाल फेका जाए। एक और बात शिंदे समझ नहीं पाए कि भाजपा जिसके साथ गठबंधन करती है। उसे अंततः तोड़ कर कमजोर बना देती है। उद्धव ठाकरे इस तथ्य को जानते थे इसलिए भाजपा से रिश्ता तोड़कर कांग्रेस और राकांपा से गठबंधन कर सरकार बनाई।छल छद्म तोड़ना भाजपा की जीन में है। आज भाजपा में दूसरे दलों से आए ज्यादातर विधायक और सांसद हैं।पार्टी तोड़ना भाजपा की फितरत है। भाजपा ने शिंदे को फोड़कर अपना निहित एजेंडा पूरा कर लिया। यही झारखंड में अंजाम देना चाहती थी लेकिन मुख्यमंत्री की सजगता से भाजपा को वहां सफलता नहीं मिली। बिहार में भी नीतीश कुमार ने भाजपा से नाता तोड़कर जेडीएस से जोड़ लिया। भाजपा वहां असफल हो गई किंतु उद्धव ठाकरे को पार्टी तोड़े जाने की कोई शंका होती तो तैयार रहते लेकिन सावधानी हटी, दुर्घटना घटी की उक्ति चरितार्थ हो गई।
अब जब शिंदे द्वारा उनको मुख्यमंत्री बनाने के दावे के समर्थन में जो विधायकों का सहमति पत्र सौंपा उसमें कई विधायकों के हस्ताक्षर फर्जी हैं ऐसा डिप्टी स्पीकर का कहना है। अगर बात सही निकली तो शिंदे का जाना तय है। शिंदे की हालत अब ऐसी हो गई है जिनके एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ खाई है। उद्धव ठाकरे के साथ लौटना असंभव है।यदि शिंदे की सरकार गिरी या हटा दी गई तो उनके साथियों में भगदड़ मच सकती है लेकिन उन्हें दोबारा उद्धव ठाकरे लेने वाले नहीं। कांग्रेस और राकापा में तो जगह ही नहीं मिलेगी।दूध का जला छाछ भी फूंककर पीता है। दूसरी तरफ चुनाव आयोग द्वारा शिंदे गुट को नाम और निशान देने की हड़बड़ी जब कि सुप्रीमकोर्ट में सुनवाई चल रही थी उसी बीच शिंदे गुट को शिवसेना नाम और धनुष बाण निशान देना गलत था। अब सुप्रीमकोर्ट जब फैसला सुनाएगा तब निश्चित ही शिंदे के खिलाफ जाएगा।
शिंदे के दिन अब लद चुके हैं। सुरतेहाल ऐसे बन रहे हैं कि शिंदे का जाना तय है। इल्यास मर्चेंट की कलम से… 🖋
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