चुप्पी ने बढ़ाई मणिपुर संकट

  • मणिपुर को एफआईआर और अस्फा से डराया नहीं जा सकता।
  • केंद्र सरकार मणिपुर को लेकर संजीदा नहीं।

सुरेंद्र राजभर
मुंबई-
वैसे तो देश भर में पीएम मोदी के मन की बात का विरोध करते और कहते हैं हमारे मन की बात क्यों नहीं सुनी जाती? विरोध करने पर एफआईआर और जेल होती है।
मणिपुर को एफआईआर और अस्फा से डराया नहीं जा सकता। मन की बात में पीएम द्वारा मणिपुर के नाम पर चुप्पी खल गई।

मन की बात के लेखक सलाहकार ने शायद महिला पहलवानों पर चुप्पी, किसानों पर चुप्पी, पुरानी पेंशन बहाली पर चुप्पी, सेवानिवृत्त सैनिकों, वन नेशन वन रैंक और वन सैलरी की घोषणा के बाद चुप्पी, मॉरीशस की फेक कंपनी द्वारा अडानी डिफेंस में बीस हजार इन्वेस्ट पर चुप्पी, चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश में सौ गांव बसा लेने पर चुप्पी, किसान आत्महत्या पर कहना कि वे मेरे लिए थोड़े ही मरे? मणिपुर पर चुप्पी के बाद मणिपुर के लोगों ने बैनर्स पोस्टर्स लगाकर अपनी-अपनी रेडियो ट्रांजिस्टर सड़कों पर तोड़कर टुकड़े-टुकड़े करते हुए कहा, हम नहीं सुनेंगे पीएम के मन की बात। कितनी नफरत जुड़ गई होगी?

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मणिपुर,
आरएसएस दत्तात्रेय होसबले की फाइल तस्वीर

चुप्पी ने बढ़ाई मणिपुर संकट..

याद रहे मणिपुर के पहले भी पूर्वोत्तर में ऐसी आग सुलगती रही थी जिसे डायलॉग से सुलझाया गया और अब वह आदर्श राज्य बन गया। आरएसएस के बड़े नेता दत्तात्रेय होसबले ने कहा, हिंसा कोई भी उचित नहीं। हर समस्या का हल है संवाद। यहीं चूक गई केंद्र और मणिपुर सरकार। हाइकोर्ट के फैसले पर डबल इंजन की सरकार ने ध्यान नहीं दिया। उपेक्षा की। जिसका अंजाम मणिपुर हिंसा में सौ से अधिक लोगों की हत्या, साठ हजार लोगों का पलायन, हजारों घरों का जलना, बीजेपी मंत्री का घर जलाना आदि पर चुप्पी।

सोनिया गांधी की पहल पर सर्वदलीय बैठक बुलाई गई जिसमें मैत्री और कुकी समुदाय और मणिपुर सरकार का कोई प्रतिनिधि नहीं होना।सिर्फ एक कांग्रेसी का शामिल होना। केंद्र सरकार के बीजेपी नेताओं और अफसरों की चली ढाई घंटे बैठक में मणिपुर कांग्रेस के प्रतिनिधि को चंद मिनट से अधिक नहीं बोलने देना, राहुल गांधी का विरोध कर लौटने को मजबूर करना बताता है, कि केंद्र सरकार मणिपुर को लेकर संजीदा नहीं है। सच कहा जाय तो बीजेपी सरकार नहीं चाहती की डायलॉग हो और समस्या का समाधान निकले।

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केंद्र सरकार याद रखे मणिपुर को बुलडोजर से रौंदकर डराया नहीं जा सकता। दशक पहले से मणिपुर को सैनिक छावनी में बदल दिया गया फिर भी कुकी या मैत्री समुदाय को डराया नहीं जा सका। जरूरत है कि जिस प्रकार कांग्रेस की केंद्र सरकार ने संवाद के जरिए मिजोरम को दहकने से बचा लिया था। उसी तरह मणिपुर में शांति बहाली के लिए आर्मी नहीं, सरकार से सशस्त्र युद्ध नहीं प्रेम पूर्वक संवाद से बचाया जा सकता है। लेकिन इच्छा शक्ति की कमी से बीजेपी सरकार कदम नहीं उठा सकी है।


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