चेंबूर स्थित शताब्दी अस्पताल में एक वार्ड बॉय द्वारा ECG मशीन संचालित करने की घटना में मानवाधिकार आयोग ने BMC को 12 लाख रुपए का जुर्माना लगाया है। स्वास्थ्य तंत्र की बड़ी चूक और सुरक्षा की दिशा में चेतावनी।
मुंबई: चेंबूर के ‘पं. मदन मोहन मालवीय शताब्दी अस्पताल’ में एक हैरतअंगेज खुलासा हुआ — एक वार्ड बॉय (स्वीपर/असाहाय कर्मचारी) को ECG मशीन चलाते हुए देखा गया। इसके बाद महाराष्ट्र राज्य मानवाधिकार आयोग (MSHRC) ने इस घटना को गंभीर माना और बीएमसी (Brihanmumbai Municipal Corporation) पर ₹12 लाख का जुर्माना लगाया। इस फैसले ने न केवल स्वास्थ्य तंत्र की अनदेखी को उजागर किया, बल्कि यह भी सवाल उठाया कि क्या बड़े शहरी अस्पतालों में सक्षम और प्रशिक्षित मेडिकल स्टाफ की कमी हो सकती है।
टेक्निशियन पद खाली और ‘प्रशिक्षित कर्मचारी’ का बहाना
BMC ने आयोग को बताया कि ECG तकनीशियन की पोस्ट एक वर्ष से खाली थी, और इस कमी को पूरा करने के लिए किसी “प्रशिक्षित कर्मचारी” को यह जिम्मेदारी सौंपी गई। हालांकि, BMC ने इस “प्रशिक्षण” का कोई दस्तावेज पेश नहीं किया। इस दौरान आयोग ने पूछा कि “प्रशिक्षित कर्मचारी” से क्या मतलब है, और अस्पताल के प्रतिनिधि ने जवाब दिया कि लंबे समय से काम करने वाला वार्ड बॉय ही वह व्यक्ति था।
इस बहाने ने आयोग को संतुष्ट नहीं किया — उन्होंने स्पष्ट किया कि अस्पतालों को संवेदनशील उपकरण संचालित करने के लिए जाकर योग्य तकनीशियन ही नियुक्त करना चाहिए, क्योंकि गलत संचालन से “गलत निष्कर्ष” निकल सकते हैं और यह रोगी की जान को खतरे में डाल सकता है।
मानवाधिकार आयोग का फैसला और सख्ती
MSHRC की अध्यक्षता करते हुए न्यायमूर्ति ए.एम. बादर ने इस मामले में निष्कर्ष दिया कि BMC की यह लापरवाही सीधे मानवाधिकारों (विशेष रूप से जीवन से जुड़ा अधिकार — अनुच्छेद 21) का उल्लंघन है। आयोग ने BMC को यह निर्देश दिया:
- शताब्दी अस्पताल में तत्काल एक प्रशिक्षित ECG तकनीशियन नियुक्त किया जाए।
- ₹12,00,000 की क्षतिपूर्ति (कम्पेनसेशन) महाराष्ट्र राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को देनी होगी।
- BMC को इस घटना पर एक “Action Taken Report” (कार्रवाई रिपोर्ट) एक महीने के भीतर आयोग को प्रस्तुत करनी होगी।
- आयोग ने BMC को कड़ा फटकार लगाते हुए कहा कि ऐसी चूक “अस्पताल के समृद्धता में भी कहीं न कहीं चिकित्सा तंत्र की दुर्बलता का प्रतीक” है। न्यायमूर्ति बादर ने कहा कि “इस आयोग ने कभी यह नहीं सोचा था कि ज़ोला-चाप डॉक्टरों की तरह की हालत किसी समृद्ध नगरपालिका अस्पताल में होगी।”
🏎️ Navi Mumbai Street Circuit: दिसंबर 2025 में होगी पहली नाइट रेस, इंडियन रेसिंग फेस्टिवल का बनेगा आकर्षण
प्रभावित मरीजों की संख्या और व्यापक प्रभाव
आयोग ने यह भी बताया कि जनवरी से अगस्त 2025 तक मात्र इस अस्पताल में 3,344 ECG परीक्षण ऐसे कर्मचारियों द्वारा किए गए, जिनकी योग्यता स्पष्ट नहीं थी। यदि इसी दर को पूरे वर्ष पर लिया जाए, तो अनुमानतः 5,000 से अधिक मरीज इस लापरवाही की चपेट में आ सकते हैं।
इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए आयोग ने इसे “class action complaint” (समूह शिकायत) कहा है — अर्थात् यह केवल एक व्यक्ति का मामला नहीं है, बल्कि अनेक अज्ञात रोगियों का अधिकार प्रभावित हुआ है।
इस घटना ने न केवल शताब्दी अस्पताल बल्कि अन्य BMC-चालित अस्पतालों में ऐसी ही चूक की आशंका को भी हवा दी है — कहीं और भी ऐसे अनियोजित व्यवस्थाएं हो रही हों। आयोग ने चेतावनी दी कि अन्य अस्पतालों में भी निदान उपकरणों का संचालन गैरप्रशिक्षित कर्मियों से हो रहा हो सकता है।
लापरवाही कैसे हुई — कारण और आलोचना
1. कर्मचारी रिक्तता और भर्ती न करना
BMC ने स्वीकार किया कि तकनीशियन की पोस्ट एक वर्ष से रिक्त थी, लेकिन इस रिक्तता को भरने के लिए उन्होंने नियमित भर्ती प्रक्रिया नहीं अपनाई। आयोग ने इस बात की ओर विशेष ध्यान दिया कि BMC ने उस पद के लिए विज्ञापन तक जारी नहीं किया।
2. अनुदृष्टिपूर्ण अपील – “प्रशिक्षित कर्मचारी” की अवधारणा
BMC का यह कहना कि एक लंबे कार्यकाल वाला वार्ड बॉय “प्रशिक्षित” हो गया, स्वास्थ्य तंत्र और तकनीकी परीक्षा संचालन की संवेदनशीलता को कम आंकने जैसा है। ECG एक ऐसी जटिल जांच है जिसमें सही पॉजिशनिंग, सिग्नल क्लीनिंग, एवं दुष्प्रभावों को पहचानने की क्षमता होनी चाहिए।
3. मानव जीवन की अनदेखी और प्रशासन की निष्क्रियता
न्यायमूर्ति बादर ने बीएमसी की “उपेक्षा” को गंभीर लापरवाही बताया। उन्होंने प्रश्न किया कि कैसे इतने संवेदनशील उपकरणों को बिना योग्य कर्मी के संचालित होने दिया गया। इस तरह की उदासीनता मरीजों की जान के प्रति तिरस्कार है।
4. नियंत्रण और निगरानी की कमी
यदि अस्पताल का प्रशासन नियमित ऑडिट, विभागीय निरीक्षण और गुणवत्ता नियंत्रण रखता होता, तो इस तरह की भूल आसानी से पकड़ में आ सकती थी। लेकिन इस घटना से यह स्पष्ट होता है कि निगरानी तंत्र भी चरम सीमा तक ढीला था।
मरीजों के लिए जोखिम और दायित्व
- गलत परिणाम एवं निष्कर्ष: ECG रिपोर्ट स्वास्थ्य स्थिति का एक आधार है। गलत सिग्नल या निष्कर्ष से डॉक्टर गलत उपचार योजना बना सकते हैं।
- सर्जरी से पहले चयन: ऑपरेशन से पहले ECG की विश्वसनीयता अहम होती है — यदि त्रुटिपूर्ण रिपोर्ट दी जाए, तो मरीज का जोखिम बढ़ जाता है।
- वैधानिक जिम्मेदारी: अस्पताल प्रबंधन को कानूनी रूप से यह सुनिश्चित करना होगा कि सिर्फ प्रशिक्षित कर्मी ही संवेदनशील जांच कर सकें।
- भरोसा टूटना: इस तरह की घटना से मरीजों और आम जनता का सरकारी अस्पतालों पर से भरोसा कमजोर होगा।
क्या होना चाहिए — सुधार के सुझाव
- तत्काल भर्ती प्रक्रिया शुरू करना
BMC को तुरंत ECG तकनीशियन की नियमित भर्ती के लिए विज्ञापन जारी करना चाहिए और चयन प्रक्रिया पूरी करनी चाहिए। - मानक प्रशिक्षण एवं प्रमाणन
नए तकनीशियन को मान्यता प्राप्त संस्थान से प्रशिक्षण देना और प्रमाणित करना चाहिए। - निगरानी तंत्र और गुणवत्ता नियंत्रण
प्रत्येक अस्पताल में ऑडिट टीम होनी चाहिए, जो समय-समय पर जाँचे कि संवेदनशील उपकरण कौन चला रहा है। - दायित्व निर्धारण
अस्पताल प्रशासन एवं चिकित्सा निदेशक को स्पष्ट दायित्व सौंपे जाएँ — अगर कोई गलती होगी तो उन्हें जवाबदेह ठहराया जाए। - रोजगार सुरक्षा एवं संसाधन प्रबंधन
रिक्त पदों को तुरंत अप्रूव व भरा जाना चाहिए, न कि बार-बार अधूरे कार्यकाल बनाए रखें। - मरीज जागरूकता कार्यक्रम
मरीजों को यह सूचना होनी चाहिए कि कौन सी जांच किस कर्मी द्वारा की जा रही है, और वे मांग कर सकें कि प्रशिक्षित कर्मी ही जांच करें।
मुंबई के इस मामले ने दिखाया कि सिर्फ बड़ी मात्रा में अस्पताल और संसाधन होने भर से स्वास्थ्य तंत्र सुरक्षित नहीं रहता — उसमें जानबूझ कर होने वाली लापरवाही कहीं ज़्यादा खतरनाक है। यदि संवेदनशील उपकरणों को गैरप्रशिक्षित व्यक्ति चला सकते हैं, तो मरीजों की जान सीधे जोखिम में है।
मानवाधिकार आयोग का यह कदम एक चेतावनी है — स्वास्थ्य सेवा सिर्फ नाम की नहीं होनी चाहिए, बल्कि सुरक्षित, विश्वसनीय और संवेदनशील होनी चाहिए। BMC जैसे शक्तिशाली निकायों को इस दोष को सुधारना ही पड़ेगा — न कि केवल जुर्माना भरकर आँखे बंद करना।
❓Frequently Asked Questions (FAQ)
प्रश्न | उत्तर |
---|---|
क्या वार्ड बॉय को कभी चिकित्सा उपकरण चलाने की अनुमति है? | सामान्यतः नहीं, जब तक उसने उचित प्रशिक्षण और सर्टिफिकेशन न लिया हो। ECG जैसी जांच में सावधानी और तकनीकी ज्ञान ज़रूरी है। |
इस घटना पर किस तरह की कानूनी कार्रवाई हो सकती है? | MSHRC ने ₹12 लाख का जुर्माना लगाया है। साथ ही, प्रभावित मरीज या परिवार इलाज में हुई हानि के लिए अदालत में नागरिक मुकदमा कर सकते हैं। |
क्या इस तरह की घटना केवल इस अस्पताल तक सीमित है? | आयोग ने चेतावनी दी है कि अन्य BMC-अस्पतालों में भी समान चूक हो सकती है, इसलिए व्यापक जाँच आवश्यक है। |
BMC को आगे क्या करना चाहिए? | तत्काल योग्य तकनीशियन नियुक्त करना, भर्ती प्रक्रिया पारदर्शी बनाना, निरीक्षण तंत्र मजबूत करना और जवाबदेही तय करना। |
मरीजों को क्या सावधानी बरतनी चाहिए? | यदि संभव हो, जानना चाहिए कि कौन जांच कर रहा है; शक हो तो प्रशिक्षित तकनीशियन की मांग की जा सकती है। |
Discover more from
Subscribe to get the latest posts sent to your email.