महानगरों के नुक़सान।

सुरेंद्र राजभर
राजा, महाराजा, नवाब, चक्रवर्ती, सम्राट, नरेश,शासक अपनी निहित स्वार्थयुक्त सुविधा के लिए महानगर बनाते, बसाते आ रहे हैं। जिनमें सिर्फ़ दो वर्ग के लोग बसाए या बसते रहे। राजपुरुष, धनवान लोगों को ही हमेशा सुविधाएं दी जाने का अन्याय किया जाता रहा। तथाकथित सभ्य लोगों की सेवा के लिए भृत्य वर्ग की जरूरत पड़ती थी, आज भी है। वे सभ्य लोगों से थोड़ी दूर झोपड़े बनाकर रहने लगे ताकि सेवा स्थल पहुंचने में सुविधा हो। प्राचीन इंद्रप्रस्थ जो दिल्ली से डेलही तक आ पहुंची है। शासकों प्रशासकों के जुल्मों की,शोषण, दोहन, हत्या की पर्याय बनी।

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व्यापारी विदेश से आए तो शासक बन बैठे। कोलकाता को आर्थिक राजधानी बनाई जिसे हटाकर मुम्बई में स्थापित कर दिया। मद्रास जो अब चेन्नई है ब्रिटिश सरकार की रेसीडेंसी बनी। आज़ाद भारत में बिना सोचे समझे महानगरों के अलावा अहमदाबाद सूरत, कानपुर ऐतिहासिक पुणे, इंदौर,भोपाल जैसे शहरों को विस्तार मिला उद्योगधन्धे स्थापित हुए। जिसका परिणाम हुआ भृत्य वर्ग रोज़ी रोटी कमाने नगरों, महानगरों की ओर भागने लगी। यहीं शासकों, नीतिनिर्धारकों से भारी चूक हुई। उद्योगों का केन्द्रीयकरण करने से।

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यदि उद्योगधन्धे वहां लगाए जाते जहां श्रम करने वाले हाथों की कमी नहीं थी। मग़र शासक प्रशासक अपनी सुविधाओं के लिए जनहित और भविष्य की सोच ही न सके। महानगरों में भीड़भाड़ से झुग्गी झोपड़ियां बनीं जिनमें भृत्य वर्ग यानी मज़दूर रहने को बाध्य हुआ। शासकों, प्रशासकों ने उनके प्रति अपनी घृणाभावना के कारण मज़दूरों के घने आवासों को सुविधाजनक बनाने का प्रयास ही नहीं किया। नतीज़ा कोरोना जैसी महामारी की विकरालता स्पष्ट दिखती है।

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आज यदि सरकारी आंकड़ों पर यकीन करें क्योंकि सरकारी आंकड़े कभी सत्य नहीं होते। भयावहता कम करने के लिए नम्बर गेम करती रही हैं तो, देश में आज भारत में कोरोना की स्थिति सक्रिय केस 1.5 लाख, स्वस्थ होने वाले 1.64 लाख, कुल मौतें 9247 कुल संक्रमित 3.24 लाख हैं, जिन्हें 10 लाख के आंकड़े के अनुसार दिखाया गया है समाचारपत्रों में। अब आइये, देश के महानगरों की डरावनी स्थिति पर नज़र डालते हैं।

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देश के संक्रमितों में 45. इन्हीं 5 महानगरों का योगदान है। यदि इसमें अहमदाबाद पुणे इंदौर को भी शामिल कर लें तो यह प्रतिशत बढ़कर 80 प्रतिशत हो जाता है। चारों महानगरों में 2 लाख से अधिक ही कोरोना संक्रमित हैं। इन्ही महानगरों में 4000 के लगभग मरने वाले हैं। महाराष्ट्र में स्थिति भयावह बनी हुई है। जहां 4 हज़ार लोग अपनी जान खो चुके हैं।

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भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद ने दावा किया है की, देश में 46.66 लाख लोगों के टेस्ट किये गए। एक दिन में 1.42 लाख। ऊंट के मुंह में जीरा ही कही जाएगी जांच, क्योंकि सरकारी आंकड़े के अनुसार देश की आबादी 1 अरब 34 लाख है। संक्रमण बढ़ने का ख़तरा बरकरार है, क्योंकि तमिलनाडु सरकार के अनुसार राज्य में 86 प्रतिशत मरीज़ बिना लक्षण वाले हैं। पिछले महीने राज्य में संक्रमितों की संख्या 30152 और मृतकों की 251 रही।
मुम्बई की अपेक्षा दिल्ली में ज़्यादा तेज़ी से संक्रमितों की संख्या दोगुनी बढ़ रही। केवल एक दिन में 2137 केस कुल संख्या 3600 बताई जा रही है।

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महानगरों में कोरोना की यह स्थिति तब भी बेहद डरावनी है जबकि कई-कई लाख मज़दूर पैदल ट्रेन बस ऑटो बाईक से अपने गाँव चले गये। यूपी और बिहार में कोरोना संक्रमण पहले तब्लीगियों और फ़िर महानगरों से आए विवश लाचार अनाथ मज़दूरों के कारण बढ़े। इसपर

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हम सरकारों से आग्रह के साथ आगाह भी करना चाहेंगे कि उद्योगों का केन्द्रीयकरण करने की जगह विकेन्द्रीयकरण करें, ताकि मज़दूरों को अपने गाँव में ही रोज़गार मिले। प्रवासी शब्द से विभूषित न होना पड़े साथ ही कोरोना जैसी महामारी में बेसहारा होकर दर-बदर न होना पड़े।


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